हिंदू धर्म में तिलक लगाने की प्राचीन परंपरा है। यहां हर शुभ कार्य और अनुष्ठान आदि से पूर्व तिलक लगाया जाता है। ऐसे में यह प्रश्न उत्पन्न होना स्वाभाविक है कि तिलक क्यों लगाया जाता है। क्या इसका कोई वैज्ञानिक रहस्य भी है?
वास्तव में तिलक लगाने के आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण हैं। तिलक दोनों भौहों के मध्य के स्थान पर लगाया जाता है। अध्यात्म के अनुसार, यह आज्ञा चक्र का स्थान है और यहां भगवान विष्णु निवास करते हैं।
तिलक के रंग का भी खास महत्व है। लाल रंग का तिलक जहां ऊर्जा, शक्ति, पराक्रम और शुभत्व का प्रतीक है वहीं पीले रंग का तिलक ज्ञान, विवेक और सदाचार की निशानी माना जाता है। चंदन का तिलक पवित्रता, वैराग्य और ईश्वर भक्ति को अभिव्यक्त करता है।
तिलक चेहरे के सौंदर्य में भी अभिवृद्धि करता है। इससे सात्विक भावना का प्रसार होता है। विज्ञान के अनुसार तिलक लगाने से मनुष्य का आज्ञा चक्र जाग्रत होता है और उसकी पीनियल ग्रंथि सक्रिय होती है।
उसका शरीर के विभिन्न अंगों पर सकारात्मक असर होता है। साथ ही मनुष्य की मनोवृत्ति सात्विक होती है। तिलक तन, मन और जीवन में शुभ भावनाओं का प्रसार करता है।
तंत्र शास्त्र की मान्यता के अनुसार, माथे पर तिलक लगाना अपने इष्ट देव के चरणों को धारण करना है। इससे भक्त स्वयं को सदैव इष्टदेव के समीप अनुभव करते हैं। मांगलिक संस्कारों में तिलक रहित माथा शुभ नहीं माना जाता।
प्राचीन काल में तिलक को विशेष शपथ और दृढ़ प्रतिज्ञा की निशानी भी समझा जाता था। युद्ध में जाने से पूर्व योद्धाओं को तिलक लगाकर विधिवत विदा किया जाता था। इस प्रकार तिलक लगाने की प्रथा का अध्यात्म के साथ ही विज्ञान से भी घनिष्ठ संबंध है।