शनिदेव ने भगवान शिव की तपस्या कर पाया था ये महान वरदान
शनिदेव को सूर्य पुत्र तथा कर्मफल दाता माना जाता है. इनको लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं कि उन्हें मारक, अशुभ और दुख कारक माना जाता है. कश्यप गोत्रीय शनिदेव की माता सूर्य पत्नी छाया हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार उनका जन्मस्थान शिंगणापुर महाराष्ट्र है.
महर्षि कश्यप ने शनि स्त्रोत के एक मंत्र में सूर्य पुत्र शनिदेव को महाबली और ग्रहों का राजा कहा है- सौरिग्रहराजो महाबलः. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शनिदेव ने भगवान शिव की भक्ति और तपस्या से नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान प्राप्त किया है.
मान्यता के अनुसार भगवान सूर्य अपनी पत्नी छाया के पास पहुंचे तो सूर्य के प्रकाश और तेज से उनकी पत्नी छाया ने आंखें मींच लीं. उनके इस व्यवहार से छाया को श्यामवर्ण पुत्र शनिदेव की प्राप्ति हुई. शनिदेव के श्यामवर्ण को देख कर सूर्य ने छाया पर आरोप लगाया कि ये मेरा पुत्र नहीं है. इसलिए शनिदेव अपने पिता पर क्रुद्ध हो गए.
शनिदेव ने भगवान शंकर की घोर तपस्या की और शरीर को जला लिया. भगवान शंकर ने शनिदेव की भक्ति से प्रसन्न हो कर उन्हें वर मांगने कहा इस पर शिव ने वरदान मांगा कि युगों-युगों से मेरा माता छाया की पराजय होती रही है. मेरी माता पिता सूर्य से लगातार प्रताड़ित होती रही हैं. इसलिए मैं चाहता हूं कि मैं अपने पिता से ज्यादा पूज्य बनूं और उनका अहंकार टूट जाए. भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया कि तुम नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ होंगे. तुम पृथ्वीलोक के न्यायाधीश और दंडाधिकारी रहोगे तुम ही लोगों को कर्मों के अनुसार न्याय और दण्ड दोगे.
मत्य पुराण में शनिदेव के रूप का वर्णन किया गया है. उनका शरीर नीलमणि के सामान है. वे गिद्ध पर सवार हैं. उनके एक हाथ में तीर धनुष और दूसरा हाथ वरमुद्रा में है. शनिदेव अपने भक्तों को सदा सहाय होते हैं. पूरे देश में उनके मंदिरों की श्रृंखलाएं हैं. जहाँ शनिवार के दिन उनके भक्त दर्शन और पूजा के लिए पहुँचते हैं.