युधिष्ठिर को छोड़ द्रौपदी व बाकी पांडव नहीं जा पाए थे सशरीर स्वर्ग, जानिए….

भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु के पश्चात् वेदव्यास की बात मानते हुए राज-पाठ छोड़कर पांडवों ने द्रौपदी सहित सशरीर स्वर्ग जाने का निश्चय किया. स्वर्ग जाने से पहले युधिष्ठिर ने परीक्षित को सारा राज-पाठ सौंप दिया और द्रौपदी सहित सभी पांडव साधु का वस्त्र धारण कर स्वर्ग के लिए निकल पड़े. द्रौपदी सहित पांडव जब स्वर्ग जाने लगे तो उनके साथ-साथ एक कुत्ता भी चलने लगा. द्रौपदी सहित सभी पांडव यही चाहते थे कि हम सशरीर स्वर्ग पहुंचें. परन्तु रास्ते में युधिष्ठिर को छोड़कर द्रौपदी सहित बाकी पांडव एक-एक करके मृत्यु को प्राप्त हो गए. आइए जानते हैं कि किन पापों की वजह से युधिष्ठिर को छोड़ बाकी सभी लोग रास्ते में गिरकर मृत्यु को प्राप्त हुए थे.

.पहले गिरीं द्रौपदी स्वर्ग जाते समय जब पांचों पांडव, द्रौपदी और कुत्ता सुमेरु पर्वत पर चढ़ रहे थे तो उसी समय द्रौपदी लड़खड़ाकर गिर पड़ीं. द्रौपदी के गिरने पर भीम ने युधिष्ठिर से पूछा कि ‘द्रौपदी किस पाप की वजह से गिर पड़ीं’ ? इस पर युधिष्ठिर ने जबाब दिया कि ‘द्रौपदी हम सब में सबसे अधिक प्रेम अर्जुन को करती थी इसलिए वह गिर पड़ी. ऐसा कहकर बिना पीछे देखे युधिष्ठिर आगे बढ़ गए.

फिर सहदेव गिरे: द्रौपदी के गिरने के बाद थोड़ी ही देर में सहदेव भी गिर पड़े. सहदेव के गिरने पर जब भीम ने युधिष्ठिर से पूछा तो युधिष्ठिर ने कहा कि सहदेव अपने को सबसे बड़ा विद्वान समझता था. इसी पाप की वजह से उसको गिरना पड़ा.

फिर गिरे नकुल: रास्ते में नकुल के गिरने पर युधिष्ठिर ने बताया कि नकुल को अपने रूप पर बहुत अभिमान था. इसलिए आज उसकी यह गति हुई है.

फिर गिरे अर्जुन: अर्जुन के गिरने पर जब भीम ने पूछा तब युधिष्ठिर ने बताया कि अर्जुन को अपने पराक्रम पर बहुत अभिमान था. वह कहता था कि मैं एक ही दिन में शत्रुओं का नाश कर दूंगा. लेकिन वह ऐसा न कर सका. अर्जुन की आज यह हालत इसी की वजह से हुई है. ऐसा कहकर बिना पीछे देखे युधिष्ठिर आगे बढ़ गए.

सबसे अंत में गिरे भीम: रास्ते में जब सबसे अंत में भीम भी गिर पड़े तो उन्होंने अपने भी गिरने का कारण युधिष्ठिर से पूछा. भीम के पूछने पर युधिष्ठिर ने बताया कि तुम खाते बहुत थे और अपनी ताकत का झूठा प्रदर्शन भी करते थे. इसलिए तुम्हें आज धरती पर गिरना पड़ा. भीम को यह बात कहकर युधिष्ठिर कुत्ते के साथ आगे बढ़ गए.

सिर्फ युधिष्ठिर ही गए थे सशरीर स्वर्ग: द्रौपदी सहित अन्य पांडवों के रास्ते में गिरने के बाद युधिष्ठिर जैसे ही कुछ दूर आगे चले थे कि स्वयं देवराज इन्द्र अपना रथ लेकर युधिष्ठिर को लेने आ गए. इस पर युधिष्ठिर ने कहा कि द्रौपदी और मेरे भाई रास्ते में गिर गए हैं. आप ऐसी व्यवस्था कीजिए कि वे सब भी मेरे साथ चलें. इस पर इंद्र ने कहा कि वे सब पहले ही शरीर त्याग कर स्वर्ग पहुंच चुके हैं और आपको सशरीर स्वर्ग जाना है.

यमराज जी ने धारण किया था कुत्ते का रूप: द्रौपदी और अपने भाइयों के बारे में इंद्र की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा कि यह कुत्ता मेरा परम भक्त है और इसे भी मेरे साथ स्वर्ग चलने की आज्ञा दीजिए. तब इंद्र ने ऐसा करने से मना कर दिया. लेकिन जब युधिष्ठिर नहीं माने तब कुत्ते का रूप धारण किए यमराज ने अपने वास्तविक रूप को दिखाया. इस तरह युधिष्ठिर को अपने धर्म में स्थित देखकर यमराज बहुत प्रसन्न हुए और देवराज इंद्र युधिष्ठिर को सशरीर अपने रथ में बैठाकर स्वर्ग ले गए.

बुध के ध्यान मंत्र से संभलेगा कारोबार, आर्थिक स्तिथि होगी मजबूत
सत्कर्म से प्रसन्न होते हैं भाग्य के देवता शनि, पूजन से मिलता है अच्छे कार्याें का फल

Check Also

Varuthini Ekadashi के दिन इस तरह करें तुलसी माता की पूजा

 हर साल वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2025) का व्रत …