भगवान की कृपा से इच्छाएं पूरी करने के लिए तरह-तरह के प्रयास किए जाते हैं, लेकिन सभी लोगों की इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती है। भगवान को प्रसन्न करने के लिए हमारा भाव भी ऐसा होना चाहिए कि हम कृपा को प्राप्त कर सके। अहंकार को जितनी जल्दी छोड़ेंगे, परमात्मा की कृपा उतनी ही जल्दी प्राप्त की जा सकती है।
उल्टे घड़े की तरह न बनें
उल्टे घड़े पर पानी डालने का मतलब है, बेकार की कोशिश और पानी का अपमान। परमात्मा, प्रकृति के माध्यम से लगातार अपनी कृपा बरसा रहा है, जिसे लेने के लिए हमारे पास 3 तरीके हो सकते हैं।
पहला और सही तरीका यह होगा कि हम स्वयं को खाली रखें, तभी कृपा भर सकेगी।
दूसरी बात, हम पहले से ही भरे हुए होंगे तो कुछ कृपा आएगी और कुछ छलक जाएगी। पहले से ही भरे हुए होने का मतलब है कि यदि हमारे अंदर क्रोध, अहंकार, स्वार्थ जैसी बुराइयां हैं तो इनकी वजह से हम कृपा प्राप्त नहीं कर सकते हैं। अत: पहले इन बुराइयों को दूर करना चाहिए।
तीसरी स्थिति है, उल्टे घड़े की तरह कुछ लेने के लिए तैयार न होना। उल्टे घड़े पर चाहे जितना भी पानी डाला जाए, वह कभी भरा नहीं सकता है। यदि कोई व्यक्ति अपना स्वभाव भी इसी प्रकार कर लेगा तो उसे भगवान की कृपा प्राप्त नहीं हो सकती है। ऐसे लोगों पर ज्ञान की बातों का भी असर नहीं होता है। हमें अपने विचारों को और स्वभाव को हमेशा खुला रखना चाहिए ताकि हम भी अच्छी बातें और भगवान की कृपा प्राप्त कर सकें। स्वभाव में विनम्रता होनी चाहिए। विनम्रता दूसरों को प्रभावित करती है, साथ ही संतुष्ट भी करती है। विनम्र लोगों से भगवान सदैव प्रसन्न रहते हैं।