सनातन संस्कृति के हर त्यौहार में विज्ञान और धर्म का समावेश होता है। ऐसा ही वैज्ञानिक आधार वाला पर्व नवरात्र है जो देवी की आराधना का त्यौहार है। एक वर्ष में चार नवरात्र आते हैं। इसी तरह पृथ्वी द्वारा सूर्य की परिक्रमा काल में एक साल की चार संधियां होती हैं। इसमें चैत्र और आश्विनी मास में होने वाली दो संधियों में शारदीय और वासंतीय नवरात्र होते हैं। इन संधिकाल में रोगाणुओं के हमले सबसे ज्यादा होते हैं। इस समय बीमारियों की आशंका भी रहती है इसलिए शरीर शुद्धि, तन-मन को स्वच्छ और निर्मल करने के लिए नवरात्र में उपवास किए जाते हैं।
चैत्र नवरात्र का महत्व
सनातन संस्कृति की मान्यता के अनुसार चैत्र नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा का जन्म हुआ था। देवी दुर्गा के आदेश पर जगतपिता ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था। इसलिए इस शुभ तिथि को चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ होता है। शास्त्रों के अनुसार भगवान श्रीराम का जन्म चैत्र नवरात्रि की अंतिम तिथि नवमी को हुआ था। इसलिए इस तिथि को रामनवमी के नाम से जाना जाता है।
देवी ने श्रीराम को दिया था विजय का आशीर्वाद
चैत्र नवरात्र की एक पौराणिक कथा का शास्त्रों में वर्णन है। रावण महाबलशाली था इसलिए उसको पराजित करना बेहद मुश्किल था। इसलिए सभी देवी-देवताओं ने श्रीराम को देवी की आराधना कर उनसे विजय का आशीर्वाद लेने का परामर्श दिया। देवी-देवताओं की सलाह पर श्रीराम ने मां की उपासना प्रारंभ की। इसके लिए उन्होंने देवी को समर्पित करने के लिए 108 नीलकमल की व्यवस्था की और पूजा प्रारंभ की।
जब रावण को श्रीराम की देवी उपासना का पता चला तो उसने श्रीराम की आराधना को भंग करने का निर्णय किया। उसने 108 नीलकमल में से एक चुरा लिया और लंका आकर चंडी पाठ करने लगा। श्रीरम को जब एक नीलकमल के कम होने का पता चला तो उन्होंने एक नीलकमल की जगह अपनी एक आंख निकालकर देवी को समर्पित करने का निर्णय लिया। जब श्रीाराम आंख निकालकर मां भवानी को समर्पित करने जा रहे थे, तभी माता प्रकट हुई और उन्होंने प्रभू श्रीराम को विजय का आशीर्वाद दे दिया।
रावण इस समय चंडी पाठ कर रहा था। तब हनुमानजी ब्राह्मण बालक का वेश धारण कर उसके पास गए और उससे मंत्र का गलत उच्चारण करवा दिया। रावण के गलत मंत्र उच्चारण से देवी नाराज हो गई और उसको विनाश का श्राप दे दिया।