माया मनुष्य के जीवन का आधार है। संसार में जो दिखता है, वह सब माया है। लेकिन इसी में संसार का अस्तित्व है। माया ब्रह्म की शक्ति है, जो सत्य को ढक लेती है। माया का अर्थ है- जो अनुभव तो किया जा सके, लेकिन उसका कोई अस्तित्व न हो।
आभासी दुनिया इसी का नाम है। इसका अर्थ एक ऐसी दुनिया से है, जो काल्पनिक होकर भी पूरी तरह सच प्रतीत होती है। विज्ञान वर्चुअल रियलिटी और कंप्यूटर तकनीक से एेसी दुनिया बनाता है, जिससे आभासी संसार के असली होने की अनुभूति होती है। एक कृत्रिम और त्रिआयामी वातावरण बनाया जाता है तथा उसे इस तरह पेश किया जाता है कि निस्संदेह उसे ही वास्तविक समझा और स्वीकार कर लिया जाता है।
यह भ्रम ही दुखों की जड़ है। जब हम किसी काम में सफल होते हैं, तो कहने लगते हैं हम कितने काबिल हैं, पर सच तो एक ही है। जब अच्छा काम होता है तब भी वही विद्यमान है, जो गलत काम होने पर रहता है। संसार में जो दिखता है, वह सब माया है। दरअसल संसार का दूसरा नाम ही माया है।
जब हम किसी चकित कर देने वाली घटना को देखते हैं, तो उसे ईश्वर की माया कह देते हैं। माया ब्रह्म की ही शक्ति है, जो सत्य को ढक लेती है। उसकी जगह किसी दूसरी चीज के होने का भ्रम पैदा कर देती है, जैसे रस्सी से सांप का भ्रम हो जाता है।
माया ब्रह्म की शक्ति तो है, पर ब्रह्म पर माया का प्रभाव नहीं पड़ता। जादूगर के खेल की तरह माया दर्शकों को भ्रमित कर सकती है, पर खुद भ्रम में नहीं होती। इसलिए हमारे ऋषि-मुनियों और विद्वानों-मनीषियों ने कहा है कि माया से बचकर रहना चाहिए। समय-समय पर आत्मावलोकन करते रहना चाहिए कि कहीं हमारे मन-मस्तिष्क पर माया हावी तो नहीं होती जा रही है। आखिर कहा भी गया है- ‘माया महाठगिनी हम जानी।’