जो आदि देवों ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संगम कहा जाता है। इन तीनों ही शक्त्यिों के साथ भगवान दत्तात्रेय इस धरा पर अवतरित हुए थे। उनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्तियां विद्यमान हैं। उन्हें अत्रेय और अनुसूईया माता की संतान होने के कारण दत्तात्रेय के नाम से जाना जाता है। भगवान इतने तेजस्वी थे कि वे माता के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए अवतरित हुए और माता के सतीत्व ने उन्हें छोटा सा बच्चा बना दिया। भगवान दत्तात्रेय को श्रद्धालु गुरू स्वरूप में जानते हैं। शिर्डी के श्री सांईबाबा को भी श्रद्धालु भगवान दत्तात्रेय का अवतार ही मानते हैं।
यूं तो भगवान दत्तात्रेय के देशभर में कई मदिर हैं लेकिन इनका मूल स्थान महाराष्ट्र के गाणगापुर में माना जाता है। यहां भगवान दत्तात्रेय की चरणपादुकाऐं भी प्रतिष्ठापित हैं। जिनकी भक्त पूरी श्रद्धा से आराधना करते हैं। यही नहीं भगवान दत्तात्रेय के अन्य मंदिरों में मध्यप्रदेश के दो मंदिर शामिल हैं। मध्यप्रदेश के इंदौर से सटे देवास के ग्राम बांगर में भगवान दत्तात्रेय की पादुका और मूर्ति दोनों ही प्रतिष्ठापित है। यह एक जागृत मंदिर है। जहां श्रद्धालुओं द्वारा पूजन करने से सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
एक अन्य मंदिर मध्यप्रदेश के इंदौर के समीप बसे धार्मिक नगर उज्जैन में प्रतिष्ठापित है। भैरवगढ़ सिद्ध क्षेत्र में श्री कालभैरव मंदिर परिसर में भगवान दत्तात्रेय की अतिप्राचीन एक मुखी मूर्ति प्रतिष्ठापित है। यह मूर्ति अत्यंत प्राचीन है। भगवान दत्तात्रेय की यह मूर्ति अत्यंत दुर्लभ है। एक मुखी दत्तात्रेय के दर्शन भी बहुत दुर्लभ माने जाते हैं।