गुरूवार गुरू की आराधना का वार होता हैं यूं तो गुरू और माता – पिता के लिए कोई दिन निर्धारित नहीं होता लेकिन कोई ऐसा दिन जब हम उन्हें दिल से स्मरण करते हैं और अपना पूरा समय उन्हें देते हैं वह उनका दिन कहलाता है। ऐसे में उसकी आराधना करना और उससे ज्ञान लेना बेहद श्रेष्ठ होता है।
श्रद्धालु शिरडी के श्री सांई बाबा को, श्री गजानन महाराज को अपना गुरू मानते हैं तो वहीं देवता देवगुरू के तौर पर बृहस्पति का पूजन करते हैं। ऐसे में इनके गुरू इन्हें तारते हैं। जीवन में अपने गुरू का चरण वंदन करने से यश और कीर्ती मिलती है। यही नहीं देवगुरू बृहस्पति के मंदिर में जाकर आराधना पूजन करने से विवाह में आ रही बाधार दूर होती है तो बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। पांच गुरूवार करने से श्रद्धालुओं को मनोवांछित फल प्राप्त होता है और भगवान प्रसन्न होते हैं।
देवगुरू बृहस्पति के पांच पीले गुरूवार करने के दौरान एकासना व्रत किया जाता है। इस दिन बृहस्पति मंदिर में जाकर देवगुरू का पूजन किया जाता है। उन्हें हल्दी की गांठ, बेसन के लड्डू, तुवर दाल और पीला वस्त्र अर्पित किया जाता है। यही नहीं भगवान बृहस्पति को यदि शिवलिंग स्वरूप में पूजा जाता है तो उनका अभिषेक करना अच्छा होता है। मध्यप्रदेश के उज्जैन में गोलामंडी में देवगुरू बृहस्पति का अतिप्राचीन मंदिर है। जहां पांच गुरूवार नियमित जा कर दर्शन और पूजन करने से शीघ्र विवाह होता है और सभी कष्ट दूर होते हैं।