हिमालय पर्वत, सदियों से कौतूहल और आस्था का केंद्र रहा है। इस हिमालय पर्वत पर भी भगवान का विश्राम धाम माना जाता है। माना जाता है कि भगवान शिव यहां विश्राम करने आते हैं और भगवान श्री हरि विष्णु यहां बद्रीनाथ धाम में 6 माह आराम करते हैं। इस मृत्युलोक में चार पवित्र धाम माने गए हैं जिसमें केदारनाथ एक है। दूसरी ओर भगवान शिव श्री केदारनाथ में शिवलिंग में ज्योर्तिस्वरूप में प्रतिष्ठापित हैं इसलिए इसे द्वादश ज्योर्तिलिंग में स्थान प्राप्त है। वैसे तो कलियुग में भी श्रद्धालुओं को भगवान केदारनाथ के दर्शन दुर्लभ ही हैं। मगर भगवान के धाम के पट प्रतिवर्ष ग्रीष्म प्रारंभ होने के आसपास खुलते हैं। इस अवधि में बड़ी संख्या में श्रद्धालु केदारेश्वर के दर्शनों के लिए उमड़ते हैं।
कहा जाता है कि भगवान ने ही सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा स्वरूप धारण किया था, स्कन्द पुराण में उल्लेख मिलता है कि एक बेहेलिये को हिरण का मांस खाना अच्छा लगता था। एक बार जब वह शिकार के लिए निकला तो दिनभर भटकने के बाद भी उसे शिकार नहीं मिलां शाम को महर्षि नारद इस क्षेत्र में आए और बहेलिया उन्हें हिरण समझकर बाण चलाने को तैयार हो गया। इसी समय उसने देखा कि एक मेंढक को सर्प निगल रहा है। और मरने के बाद मेंढक शिव के रूप में आ गया। जिसके बाद उसने देखा कि हिरण भी मरने के बाद गणों के साथ शिवलोक को जाने लगा। उसे शिवत्व प्राप्त हो गया, तभी नारद मुनि ने ब्राह्म का वेश धारण किया और बहेलिये के सामने पहुंचे। बहेलिये ने ब्राह्मण से अपनी मुक्ति का उपाय पूछा जिस पर उन्होंने कहा कि यहां केदार क्षेत्र में शिव उपासना करने से वह शिवत्व को प्राप्त होगा। एक दूसरी कथा भी है जिसका उल्लेख शिव महापुराण में मिलता है।