मेनका नहीं बल्कि यह थी तपस्वी विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की वजह

धर्म से जुडी कई बातें हैं जो लोगों को पता नहीं होती है. ऐसे में आज हम आपको धर्म से जुडी ही एक कहानी बताने जा रहे हैं जिसे आपको जरूर जानना चाहिए. बहुत से लोगों ने पढ़ा है और उनका कहना है कि मेनका के कारण तपस्वी विश्वामित्र की तपस्या भंग हो गई थी लेकिन आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि मेनका की वजह से नहीं बल्कि किसी अन्य वजह से तपस्वी विश्वामित्र की तपस्या भंग हुई थी. आइए जानते हैं.

कहानी – विश्वामित्र अनेक वर्षो से तपस्या में लीन थे भक्ति में डूबा थे और अपनी भक्ति से स्वयं के शरीर का मोह छोड़कर जंगल में निवास कर रहे थे. वह स्वयं को संसारिक मोह माया से परे समझते थे. कहा जाता है उन्होंने ऋषि व ज्ञानी स्वभाव को छोड़कर वासना से लिप्त मानव व पुरुष की भांति व्यवहार करने लगे और विश्वामित्र ने अपनी सवयं की वासना पर नियंत्रण न करने के कारण स्त्री स्पर्श को स्वीकार कर लिए और स्वयं से अपनी तपस्या भंग कर लिया. जी हाँ, वहीं अपना सम्मान बनाये रखने के लिए मेनका पर सारा इल्जाम लगा दिया ताकि उनके सम्मान को कोई चोट ना पहुंचा सके और समाज पुरुष प्रधान होने के कारण व अपनी पुरुष प्रधान सत्ता बनाए व बचाए रखने के लिए मेनका को ही दोषी बताकर समाज के सामने पूरी स्त्रीजाति को अपमानित करके प्रस्तुत कर दिया राम जो मर्यदापुर्षोत्तम के नाम से जाने जाते है उनको भी एक स्त्री ने पाने की चेष्टा की लेकिन भगवान राम का अपने मन पर पूरा नियंत्रण रहा जिसके कारन स्त्री के वश में नहीं हुए और ना ही राम ने उस स्त्री को अपमानित भी नहीं किया.

इसी के साथ समाज ने विश्वामित्र को दोषी न मानकर मेनका का को दोषी बना दिया और समाज के साथ समस्त स्त्रीजाति ने भी इस बात को स्वीकार कर लिया. कहते हैं इंद्र ने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने की साजिश रची थी और विश्वामित्र ने वासना के वश में होकर अपनी तपस्या भंग कर ली. इसी के साथ ऐसी मान्यता है कि एक पुरुष द्वारा एक पुरुष की तपस्या भंग करने हेतु स्त्री को हथियार की भांति उपयोग किया गया और सारा दोष मेनका पर अर्थात् स्त्रीजाति पर लगा दिया गया एक पुरुष जो अपने वासना में बहकर स्त्री के अधीन हो गया और अपनी तपस्या त्याग दिया लेकिन पुरुष प्रधान समाज ने न इंद्र को दोषी ठहराया न विश्वामित्र को बल्कि स्त्री पर आरोप लगाया गए.

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