धन तेरस पर भगवान धन्वंतरि की विशेष पूजा होती है। उन्हें आयुर्वेद का जन्मदाता और देवताओं का चिकित्सक माना जाता है। भगवान विष्णु के 24 अवतारों में 12वां अवतार धन्वंतरि का था।
धन्वंतरि के जन्म के संबंध में हमें तीन कथाएं मिलती हैं:-
1. समुद्र मन्थन से उत्पन्न धन्वंतरि प्रथम : कहते हैं कि भगवान धन्वंतरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुए थी। वे समुद्र में से अमृत का कलश लेकर निकले थे जिसके लिए देवों और असुरों में संग्राम हुआ था। समुद्र मंथन की कथा श्रीमद्भागवत पुराण, महाभारत, विष्णु पुराण, अग्नि पुराण आदि पुराणों में मिलती है।
2. धन्व के पुत्र धन्वंतरि द्वितीय : कहते हैं कि काशी के राजवंश में धन्व नाम के एक राजा ने उपासना करके अज्ज देव को प्रसन्न किया और उन्हें वरदान स्वरूप धन्वंतरि नामक पुत्र मिला। इसका उल्लेख ब्रह्म पुराण और विष्णु पुराण में मिलता है। यह समुद्र मंधन से उत्पन्न धन्वंतरि का दूसरा जन्म था। धन्व काशी नगरी के संस्थापक काश के पुत्र थे।
काशी वंश परंपरा में हमें दो वंशपरंपरा मिलती है। हरिवंश पुराण के अनुसार काश से दीर्घतपा, दीर्घतपा से धन्व धन्वे से धन्वंतरि, धन्वंतरि से केतुमान, केतुमान से भीमरथ, भीमरथ से दिवोदास हुए जबकि विष्णु पुराण के अनुसार काश से काशेय, काशेय से राष्ट्र, राष्ट्र से दीर्घतपा, दीर्घतपा से धन्वंतरि, धन्वंतरि से केतुमान, केतुमान से भीमरथ और भीमरथ से दिवोदास हुए।
3.वीरभद्रा के पुत्र धन्वंतरि तृतीय
: गालव ऋषि जब प्यास से व्याकुल हो वन में भटकर रहे थे तो कहीं से घड़े में पानी लेकर जा रही वीरभद्रा नाम की एक कन्या ने उनकी प्यास बुझायी। इससे प्रसन्न होकर गालव ऋषि ने आशीर्वाद दिया कि तुम योग्य पुत्र की मां बनोगी। लेकिन जब वीरभद्रा ने कहा कि वे तो एक वेश्या है तो ऋषि उसे लेकर आश्रम गए और उन्होंने वहां कुश की पुष्पाकृति आदि बनाकर उसके गोद में रख दी और वेद मंत्रों से अभिमंत्रित कर प्रतिष्ठित कर दी वही धन्वंतरि कहलाए।
विस्तार : उपरोक्त में से प्रथम दो कथाएं ज्यादा मान्य है। प्रथम कथा के अनुसार देवता एवं दैत्यों के सम्मिलित प्रयास के शांत हो जाने पर समुद्र में स्वयं ही मंथन चल रहा था जिसके चलते भगवान धन्वंतरि हाथ में अमृत का स्वर्ण कलश लेकर प्रकट हुए। विद्वान कहते हैं कि इस दौरान दरअसल कई प्रकार की औषधियां उत्पन्न हुईं और उसके बाद अमृत निकला।
हालांकि धन्वंतरि वैद्य को आयुर्वेद का जन्मदाता माना जाता है। उन्होंने विश्वभर की वनस्पतियों पर अध्ययन कर उसके अच्छे और बुरे प्रभाव-गुण को प्रकट किया। धन्वंतरि के हजारों ग्रंथों में से अब केवल धन्वंतरि संहिता ही पाई जाती है, जो आयुर्वेद का मूल ग्रंथ है। आयुर्वेद के आदि आचार्य सुश्रुत मुनि ने धन्वंतरिजी से ही इस शास्त्र का उपदेश प्राप्त किया था। बाद में चरक आदि ने इस परंपरा को आगे बढ़ाया।
कहते हैं कि धन्वंतरि लगभग 7 हजार ईसापूर्व हुए थे। वे काशी के राजा महाराज धन्व के पुत्र थे। उन्होंने शल्य शास्त्र पर महत्वपूर्ण गवेषणाएं की थीं। उनके प्रपौत्र दिवोदास ने उन्हें परिमार्जित कर सुश्रुत आदि शिष्यों को उपदेश दिए। दिवोदास के काल में ही दशराज्ञ का युद्ध हुआ था। धन्वंतरि के जीवन का सबसे बड़ा वैज्ञानिक प्रयोग अमृत का है। उनके जीवन के साथ अमृत का स्वर्ण कलश जुड़ा है। अमृत निर्माण करने का प्रयोग धन्वंतरि ने स्वर्ण पात्र में ही बताया था।
उन्होंने कहा कि जरा-मृत्यु के विनाश के लिए ब्रह्मा आदि देवताओं ने सोम नामक अमृत का आविष्कार किया था। धन्वंतरि आदि आयुर्वेदाचार्यों अनुसार 100 प्रकार की मृत्यु है। उनमें एक ही काल मृत्यु है, शेष अकाल मृत्यु रोकने के प्रयास ही आयुर्वेद निदान और चिकित्सा हैं। आयु के न्यूनाधिक्य की एक-एक माप धन्वंतरि ने बताई है।
‘धनतेरस’ के दिन उनका जन्म हुआ था। धन्वंतरि आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता हैं। रामायण, महाभारत, सुश्रुत संहिता, चरक संहिता, काश्यप संहिता तथा अष्टांग हृदय, भाव प्रकाश, शार्गधर, श्रीमद्भावत पुराण आदि में उनका उल्लेख मिलता है। धन्वंतरि नाम से और भी कई आयुर्वेदाचार्य हुए हैं। आयु के पुत्र का नाम धन्वंतरि था।