करवाचौथ का त्यौहार सभी महिलाओं के लिए बहुत स्पेशल माना जाता है. ऐसे में सभी सुहागिनें हर साल अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं. वहीं करवा चौथ के व्रत को बहुत कठिन व्रत की संज्ञा दी जाती है और करवा चौथ के व्रत में जितना महत्वपूर्ण करवा होता है, उतनी ही जरूरी छलनी भी होती है. जी हाँ, इस दिन बिना छलनी के करवा चौथ का व्रत पूर्ण नहीं माना जाता है. दरअसल करवा चौथ के दिन सुहागिन महिलाएं छलनी में दीपक यानी दीया रखकर चांद को देखने के बाद अपने पति को देखती हैं और अपने पति को छलनी से देखने के बाद ही अपना व्रत पूरा करती हैं. ऐसा में बात करें धार्मिक मान्यताओं की तो चंद्रमा को भगवान ब्रह्मा का रूप माना जाता है.
इसी के साथ ऐसी मान्यता भी है कि ”चांद की आयु लंबी होती है. साथ ही चांद सुंदरता और प्रेम का प्रतीक होता है. यही वजह है कि करवा चौथ के व्रत के दौरान महिलाएं छलनी से चांद को देखकर अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं.” इसी के साथ एक पौराणिक कथा के मुताबिक, ”साहूकार की बेटी ने अपने पति की लंबी आयु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था. लेकिन भूख से उसकी हालत खराब होने लगी थी. साहूकार के 7 बेटे भी थे. साहूकार के बेटों ने अपनी बहन से खाना खाने को कहा. लेकिन साहूकार की बेटी ने खाने से इंकार कर दिया. भाइयों से जब बहन की हालत देखी नहीं गई तो उन्होंने चांद निकलने से पहले ही एक पेड़ की आड़ छलनी के पीछे एक जलता हुआ दीपक रखकर बहन को कहा कि चांद निकल आया है. तब उनकी बहन ने दीपक को चांद समझकर अपना व्रत खोल लिया था लेकिन व्रत खोलने के बाद उसके पति की मुत्यु हो गई. माना जाता है कि असली चांद को देखे बिना व्रत खोलने की वजह से ही उसके पति की मृत्यु हुई.”
कहते हैं यही से स्वयं अपने हाथ में छलनी लेकर चांद को देखने के बाद पति को देखकर करवा चौथ का व्रत खोलने की परंपरा शुरू हुई, ताकि कोई छल कपट से किसी का व्रत न तुड़वा सके.