पुनर्जन्म अर्थात मरने के बाद फिर से नया जन्म होता है या नहीं, इस बारे में विज्ञान तो किसी एक नतीजे पर पहुंच ही नहीं पाया है, धर्म दर्शन भी एक मत नहीं है।
भारतीय मूल के सभी धर्म दर्शन पुनर्जन्म को मानते हैं, यहां तक कि आत्मा के अजर अमर अस्तित्व को ले कर मौन रहने वाले बौद्ध और जैन दर्शन भी पुनर्जन्म की संभावना को निश्चित मानते हैं। फिर से जन्म लेने की तकनीक पर भले ही मतभेद हों, पर दोबारा जन्म की बात को किसी न किसी रूप में सभी मान रहे हैं।
विज्ञान दूसरी तरह से मानता है कि शरीर या जीवन का अंत नहीं होता। उसका रूप बदलता रहता है क्योंकि पदार्थ और शक्ति का कभी नाश नहीं होता। विभिन्न तत्वों (पंचतत्वों) के संयोग से जो जीव बनते हैं, मृत्यु के समय वे नष्ट होते तो दिखाई देते हैं पर वास्तव में वे मिट नहीं जाते।
पिछली शताब्दी में अपनी अन्वेषी मेधा के कारण आधुनिक गैलीलियों कहे जाने वाले वैज्ञानिक डा. इयान स्टीवेंसन ने पहली बार वैज्ञानिक शोधों और प्रयोगों के दौरान पाया कि शरीर न रहने पर भी जीवन का अस्तित्व बना रहता है।
उपयुक्त अवसर आने पर वह अपने शरीर या पार्थिव रूप को फिर से रचता है। उन्ही की टीम द्वारा किए प्रयोग और अऩुसंधानों को स्पिरिट साइंस एंड मेटाफिजिक्स में संजोते हुए लिखा है कि पुनर्जन्म काल्पनिक नहीं हैं। उसकी संभावना निश्चित सी हैं।
किसी बालक को पिछले जन्म की याद आने और जांच करने पर उन विवरणों कए सही साबित होने की बात तो मामूली से प्रमाण हैं। इन विवरणों में कई गप्प और तुकबंदी जैसे भी साबित हो सकते हैं, पर जिन समाजों और संप्रदायों में पुनर्जन्म पर विश्वास नहीं किया जाता उऩमें भी उस तरह की घटनाएं हुई हैं और परखने के बाद सही साबित हुई है।
अमेरिका के कोलोराडी प्यूएली नामक में रुथ सीमेंन्स नामक लड़की ने सन 1995 ई0 में न सिर्फ पांच साल की अवस्था में अपने पिछलो जन्म का सही हाल बता कर ईसाई पंरपरा के उन निष्ठावान अनुयायियों को हैरान कर दिया जो पुनर्जन्म को नहीं मानते।
रुथ सीमेंन्स मोरे वनस्टाइन नामक विद्या विशारद ने अपने प्रयोग से अर्धमूर्छित करके उसके पिछले जन्म की कई सूचनाएं प्राप्त कीं। उसने बताया कि 1890 में आयरलैण्ड के कार्क नगर में उसका पिछला जन्म हुआ था, तब उसका नाम ब्राइडी मर्फी और पति का नाम मेकार्थी था।
इस्तम्बूल(तुर्की) की विज्ञान अनुसंधान परिषद ने पुनर्जन्म की एक ऐसी घटना की पड़ताल की जो निस्संदेह पुनर्जन्म से संबंधित थी। इस मामले का प्रमुख पात्र चार वर्ष का बालक इस्माइल अतलिंट्रलिक पिछले जन्म में दक्षिण पूर्व के अदना गांव का वाशिंदा आविद सुजुलयुस था। इसकी हत्या की गई थी। उसके तीन बच्चे थे गुलशरां, लकी और हिकमत।
चार साल का इस्माइल सोते-सोते बच्चों के नाम पुकारने लगता और रोने लगता। एक दिन इस्माइल ने एक फेरी वाले को आइसक्रीम बेचते देखा। उसने अजनबी का नाम लेकर पुकारा-महमूद तो साग-सब्जी बेचते थे, अब आइसक्रीम बेचने लगे। फेरी वाला दंग रह गया।
यह बच्चा कैसे उसका नाम जानता है और कैसे उस पिछले व्यापार की चर्चा करता जब कि उसका जन्म भी नहीं हुआ था, बच्चे ने कहा तुम भूल गये मैं तुम्हारा चिर परिचित आविद हूं। कई साल पहले उसका कत्ल हो गया था।
बच्चे को अदना नगर ले गये। वहां पहुंचा तो पिछले जन्म की बेटी गुलशरां को देखते ही पहचान गया। उसने हत्या के स्थान अस्तबल को भी दिखाया और बताया कि रमजान ने कुल्हाड़ी से हमला कर मुझे मार डाला। और विवरण भी सही पाए गए। उनके आधार पर पुलिस ने इस कत्ल की ठीक वैसी ही जांच की जैसी कि बच्चे ने बताई।
पिछले जन्म को प्रमाणित करने के लिए उनकी स्मृतियों के आधार पर परखने और सही पाने के बाद मान लेने की तकनीक बहुत पुरानी है। उस पर संदेह भी जताए गए हैं।
अब जीन्स और गुणसूत्रों के आधार पर परखने की नई तकनीक काम में लाई जा रही है। 1998 से उपयोग की जा रही इस तकनीक के और भी रोचक और ज्यादा प्रामाणिक नतीजे सामने आ रहे हैं।