भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा का आयोजन आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की द्वितीया को किया जाता है. बता दें, इस वर्ष यह दिन 4 जुलाई को पड़ रहा है. इस दिन ओडिशा के पुरी नामक स्थान और गुजरात के द्वारका पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा बड़ी धूमधाम से निकाली जाती है. यही नहीं अब तो देशभर में भगवान जगन्नाथ के भक्तों द्वारा भव्य रथयात्राओं को निकाला जाता है लेकिन फिर भी पुरी और द्वारका की रथयात्राओं की भव्यता और शोभा की बात ही निराली है. ये यात्रा करीब 3 दिनों तक चलती हैं जहां दूर-दूर से लोग आते हैं.
रथयात्रा एक ऐसा पर्व है जिसमें भगवान जगन्नाथ स्वयं चलकर जनता के बीच आते हैं और सुख दुख के सहभागी बनते हैं. भगवान श्रीजगन्नाथजी के प्रसाद को महाप्रसाद माना जाता है जिसको ग्रहण करने के लिए भक्त इसमें सम्मिलित होते हैं. सभी भक्त बेहद उतावले रहते हैं. मान्यता है कि श्रीजगन्नाथ जी के प्रसाद को महाप्रसाद का स्वरूप महाप्रभु श्री बल्लभाचार्य जी ने दिया था.
रथयात्रा उत्सव बढ़ा देता है श्रद्धालुओं का उत्साह
रथयात्रा उत्सव के दौरान श्रद्धालुओं का भक्ति भाव देखते ही बनता है क्योंकि जिस रथ पर भगवान सवारी करते हैं उसे घोड़े या अन्य जानवर नहीं बल्कि श्रद्धालुगण ही खींच रहे होते हैं. पुरी में श्री जगदीश भगवान को सपरिवार विशाल रथ पर आरुढ़ कराकर भ्रमण करवाया जाता है फिर वापस लौटने पर यथास्थान स्थापित किया जाता है.
सौ यज्ञों के बराबर है रथयात्रा का पुण्य
भगवान श्रीकृष्ण के अवतार ‘जगन्नाथ’ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना जाता है. यात्रा की तैयारी अक्षय तृतीया के दिन श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्रा के रथों के निर्माण के साथ ही शुरू हो जाती है. जगन्नाथ जी का रथ ‘गरुड़ध्वज’ या ‘कपिलध्वज’ कहलाता है. रथ पर जो ध्वज है, उसे ‘त्रैलोक्यमोहिनी’ या ‘नंदीघोष’ रथ कहते हैं. बलराम जी का रथ ‘तलध्वज’ के नाम से पहचाना जाता है. रथ के ध्वज को ‘उनानी’ कहते हैं. जिस रस्सी से रथ खींचा जाता है वह ‘वासुकी’ कहलाता है. सुभद्रा का रथ ‘पद्मध्वज’ कहलाता है. रथ ध्वज ‘नदंबिक’ कहलाता है. इसे खींचने वाली रस्सी को ‘स्वर्णचूडा’ कहा जाता है.