ययाति का यदु कुल को शाप, इसलिए राजवंशियों के द्वारा बहिष्कृत हैं यदुवंशी

मित्रों क्या आपको पता है कि राजा ययाति ने अपने पुत्र यदु को क्या शाप दिया ‍था? इसी यदु के कुल में भगवान कृष्ण का अवतार हुआ था। शाप की कथा शिशुपाल ने धर्मराज युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ में सुनाई थी।इक्ष्वाकु वंश के राजा नहुष के छः पुत्र थे- याति, ययाति, सयाति, अयाति, वियाति तथा कृति। याति परमज्ञानी थे तथा राज्य, लक्ष्मी आदि से विरक्त रहते थे इसलिए राजा नहुष ने अपने द्वितीय पुत्र ययाति का राज्यभिषके कर दिया।

शुक्राचार्य ने अपनी पुत्री देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ कर दिया। वहीं दैत्यराज वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा भी देवयानी के साथ उसकी दासी के रूप में ययाति के भवन में आ गई।कुछ काल उपरान्त देवयानी के पुत्रवती होने पर शर्मिष्ठा ने भी पुत्रोत्पत्ति की कामना से राजा ययाति से प्रणय निवेदन किया जिसे ययाति ने स्वीकार कर लिया। राजा ययाति के देवयानी से दो पुत्र यदु तथा तुवर्सु और शर्मिष्ठा से तीन पुत्र द्रुह्य, अनु तथा पुरु हुए।

देवयानी को ययाति तथा शर्मिष्ठा के संबंध के विषय में पता चला तो वह क्रोधित होकर अपने पिता के पास चली गई। शुक्राचार्य ने राजा ययाति को बुलवाकर कहा, ‘रे ययाति! तू स्त्री लम्पट, मन्द बुद्धि तथा क्रूर है। इसलिए मैं तुझे शाप देता हूं तुझे तत्काल वृद्धावस्था प्राप्त हो।’उनके शाप से भयभीत हो ययाति बोले, ‘हे ब्रह्मदेव! आपकी पुत्री के साथ विषय भोग करते हुए अभी मेरी तृप्ति नहीं हुई है। इस शाप के कारण तो आपकी पुत्री का भी अहित है।’ यह सुनकर शुक्रचार्य जी ने कहा, ‘अच्छा! यदि कोई तुझे प्रसन्नतापूर्वक अपनी यौवनावस्था दे तो तुम उसके साथ अपनी वृद्धावस्था को बदल सकते हो।’

इसके पश्चात् राजा ययाति ने अपने ज्येष्ठ पुत्र यदु से कहा, ‘वत्स यदु! तुम अपने नाना के द्वारा दी गई मेरी इस वृद्धावस्था को लेकर अपनी युवावस्था मुझे दे दो।’ यदु बोला, ‘हे पिताजी! असमय में आई वृद्धावस्था को लेकर मैं जीवित नहीं रहना चाहता। इसलिएमैं आपकी वृद्धावस्था को नहीं ले सकता।’ययाति ने अपने शेष पुत्रों से भी इसी प्रकार की मांग की किन्तु सबसे छोटे पुत्र पुरु को छोड़ कर अन्य पुत्रों ने उनकी मांग को ठुकरा दिया। पुरु अपने पिता को अपनी युवावस्था सहर्ष प्रदान कर दिया।

पुनः युवा हो जाने पर राजा ययाति ने यदु से कहा, ‘तूने ज्येष्ठ पुत्र होकर भी अपने पिता के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण नहीं किया। अतः मैं तुझे राज्याधिकार से वंचित करके अपना राज्य पुरु को देता हूं और मैं तुझे शाप भी देता हूँ कि तेरा वंश सदैव राजवंशियों के द्वारा बहिष्कृत रहेगा।राजा ययाति एक सहस्त्र वर्ष तक भोग लिप्सा में लिप्त रहे किन्तु उन्हें तृप्ति नहीं मिली। विषय वासना से तृप्ति न मिलने पर उन्हें उनसे घृणा हो गई और उन्होंने पुरु की युवावस्था वापस लौटा कर वैराग्य धारण कर लिया।

अगर गायत्री मंत्र जपते हुए करते हैं यह गलती तो नहीं मिलेगा पुण्य.. पढ़ें 11 काम की बातें
कृष्ण जब बन गए कालिका माता, जानिए ऐसे ही पांच रहस्य

Check Also

Varuthini Ekadashi के दिन इस तरह करें तुलसी माता की पूजा

 हर साल वैशाख माह के कृष्ण पक्ष में वरूथिनी एकादशी (Varuthini Ekadashi 2025) का व्रत …