दशहरा पर्व विजय का पर्व है। भगवान राम ने इस दिन रावण का वध किया था। इस तरह यह दिन असत्य पर सत्य की जीत के लिए जाना जाता। इस दिन आप नए संकल्प के साथ अपने कार्य शुरू कर सकते हैं। उत्तर भारत में यह पर्व काफी हर्षोल्लास से मनाया जाता है। राम का आदर्श और उनकी महिमा इन चौपाइयों में काफी सटीक ढंग से झलकती हैं।
राजीव नयन धरें धनु सायक
भगत बिपति भंजन सुखदायक
मंगल भवन अमंगल हारी
हरहु नाथ मम संकट भारी
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा
जानत प्रिया एक मनु मोरा
जानु प्रीत रस एतनेहु माहीं
मोरे राम भरत दोई आंखी
सत्य कहहुं तुम शंकर साखी
रघुकुल रीति सदा चली आई
प्राण जाय पर वचन न जाई
द्रवहु सो दशरथ अजिर बिहारी
जौं प्रभु दीन दयालु कहावा
आरति हरन बेद जसु गावा
जपहिं नामु जन आरत भारी
मिटहिं कुसंकट होहिं सुखारी
हरहु नाथ मम संकट भारी
हरन कठिन कलि कलुष कलेसू
महामोह निसि दलन दिनेसू
सकल विघ्न व्यापहिं नहिं तेही
राम सुकृपाँ बिलोकहिं जेही
गहन दनुज कुल दहन कृशानू
क्रोधी कामी हरि कथा
ऊसर बीज भए फल जथा
मो सम दीन न दीन हित तुम समान रघुबीर
अस बिचारि रघुबंस मणि हरहु विषम भव भीर
तिमि रघुनाथ निरंतर प्रिय लागहु मोहि राम
प्रणत पाल रघुवंश मणि करुणा सिंध खरारि
गये शरण प्रभु राखिहैं सब अपराध बिसार
श्रवण सुजसु सुनि आयउँ, प्रभु भंजन भवभीर
त्राहि त्राहि आरति हरन, सरन सुखद रघुबीर
जनम-जनम सिया रामपद, यह वरदान न आन
बार-बार वर मांगहु हर्ष देहु श्री रंग
पद सरोज अन पायनी भक्ति सदा सत संग
बरनी उमापति राम गुन हरषि गए कैलास
तब प्रभु कपिन्ह दिवाए सब बिधि सुखप्रद बास
पुनि प्रभु मोहि न बिसारेउ दीनबंधु भगवान
विनती करि मुनि नाथ सिर, कह करजोरि बहोरि
चरन सरोरुह नाथ जनि, कबहु तजै मति मोर
नहीं विद्या नहीं बहुबल, नहीं खर्चन को दाम
मो सम पतित अपंग को, तुम पति राखो राम
तुलसी रघुबर नाम के बरन बिराजत दोउ
कोटि कल्प काशी बसे मथुरा कल्प हजार
एक निमिष सरयू बसे तुले न तुलसी दास
अटलराज महाराज की चौकी हनुमत वीर
कहा कहो छवि आपकी, भले बिराजे नाथ
तुलसी मस्तक तब नवै, धनुष बाण लो हाथ
सुनि प्रभु वचन बिलोकि मुख गात हरषि हनुमंत
चरण तजेउ प्रेमाकुल त्राहि-त्राहि भगवंत