रमजान में सेवईं की मिठास बिखेरने वाले लखनऊ में सावन की फुहारों के साथ घेवर और अंदरसे की खुशबू फैल गई है। सुबह शिवालयों में लगने वाली भीड़ शाम-ए-अवध से पहचाने जाने वाले शहर में काशी की छटा बिखेर रही है। शायद यही वजह है कि पुराने लखनऊ की गलियों को छोटी काशी ही कहा जाने लगा। यहां हर नुक्कड़ पर शिवालय है तो हर घर में शिवभक्त। यहां हर मंदिर का अपना इतिहास है। कुछ तो भगवान राम के काल के बताए जाते हैं।
बड़ा शिवाला: यहां पार्वती के बिना है शिव का रौद्र रूप
रानीकटरा के बड़ा शिवाला में ऐसा शिवलिंग है जिसमें 108 छोटे छोटे शिवलिंग समाहित हैं। सुरेश चन्द्र पाण्डेय के अनुसार यह मंदिर तब बनवाया गया था जब शहर में इमामबाड़ा बना था। नवाब आसिफ-उद्-दौला की मदद से बनवाया गया था। यहां बड़े शिवलिंग के चारों ओर 108 छोटे शिवलिंग बनाए गए। ऐसे में जलाभिषेक करने से एक बार में ही 108 शिवलिंगों की अर्चना का फल मिलता है। मंदिर समिति के सदस्य विष्णु त्रिपाठी लंकेश ने बताया कि बड़ा शिवाला में शिव का रौद्र रूप है इसलिए वहां माता पार्वती नहीं हैं। केवल नंदी महाराज ही शिवजी के साथ हैं।
छोटी काशी में हैं 30 शिवालय
रानीकटरा में बड़ा शिवलय के पास ही छोटा शिवालय है। यहां शिव एकांत मुद्रा में हैं। यहां पंचदेव उपासना की जा सकती है। यहां शिवलिंग उत्तर-दक्षिण न होकर पश्चिम-पूर्व दिशा में है। इसके साथ ही नजदीक में मंझला शिवालय भी है। इस तरह छोटी काशी क्षेत्र में लगभग तीस शिवालय हैं।
बुद्धेश्वर: यहां बुधवार को होती है पूजा
मोहान रोड पर बुद्धेश्वर मंदिर है। ऐसी मान्यता है कि यह मंदिर भगवान राम के काल का है। यहां सोमवार से ज्यादा बुधवार को पूजा का महत्व माना जाता है। बुद्धेश्वर धाम के महंत लीलापुरी के अनुसार त्रेतायुग में जब लक्ष्मण जी प्रभु राम की आज्ञा का पालन करते हुए माता सीता को वन में छोड़ने जा रहे थे तब उनके मन में माता सीता की सुरक्षा को लेकर संदेह हुआ। ऐसे में उन्होंने भोले शंकर का ध्यान किया। तब भगवान शिव ने लक्ष्मण के सारे संदेह दूर करते हुए माता सीता के विराट स्वरूप के दर्शन करवाए। चूंकि वह दिन बुधवार का था इसलिए यह मंदिर बुद्धेश्वर महादेव कहलाया। मंदिर के पास ही सीताकुंड भी है जहां सीता ने चरण धोए थे इसलिए वहां भी भक्त पूजन करने पहुंचते हैं।
सर्राफा शिवाला था मनकामेश्वर!
डालीगंज के मनकामेश्वर मंदिर में अमूमन हर भक्त गया होगा, लेकिन गिनेचुने लोग ही इसके पीछे की कहानी जानते हैं। महंत देव्यागिरि बताती हैं कि राजा हर नवधनु ने शत्रु पर विजय पाने के बाद यह मंदिर बनवाया था। कहा जाता है कि 12वीं सदी के यमन आक्रमणकारियों ने इस मंदिर का स्वर्ण लूट कर इसे नष्ट कर दिया था। इसके 500 साल बाद जूना अखाड़ा ने इसका सौन्दर्यीकरण करवाया। इसमें सेठ पूरन चन्द्र सर्राफ का अहम योगदान रहा इसलिए इसे सर्राफा शिवाला भी कहा जाने लगा था। 1933 में इसे मनकामेश्वर मठ कहा जाने लगा। महंत रामगिरि, महंत बालक गिरि, महंत त्रिगुणानंद गिरि, महंत बजरंग गिरि, महंत केशव गिरि महाराज के बाद वर्तमान में देव्या गिरि यहां महंत हैं।
बटुक भैरव देवालय: आज भी होता है घुंघरू पूजन
बटुक भैरव देवालय में सैकड़ों साल पुराना शिव मंदिर है। लखनवी कथक घरानी की मशहूर ड्योढ़ी नजदीक ही है इसलिए पंडित शंभू महाराज, पंडित लच्छू महाराज और पंडित बिरजू महाराज ने इस मंदिर में पूजा की है। यहां आज भी घुंघरू पूजन की परंपरा है। ऐसा कहा जाता है कि पंडित भैरो प्रसाद ने यह मंदिर बनवाया था। यहां हर भादों के आखिरी रविवार को घुंघरूओं वाला समारोह होता है। इस मंदिर में यह भी परंपरा है कि भक्त वहां श्वान को इमरती खिलाते हैं।
सिद्धनाथ मंदिर में होती है पंचदेव उपासना
नादान महल रोड़ पर स्थित सिद्धनाथ मंदिर शहर के पुराने मंदिरों में से एक हैं। कहा जाता है कि यहां भोलेनाथ स्वयं-भू हैं। मंदिर में शिवलिंग जमीन से करीब तीन फिट नीचे हैं। सिद्धनाथ जी का मंदिर शास्त्रोक्य शिवालय पद्धति का मंदिर माना जाता है। मंदिर के वायव्य कोण पर पार्वती, नैऋत्य कोण पर गणेश, अग्नि कोण पर सूर्य और ईशान कोण पर विष्णु विराजमान हैं। इस तरह यहां पंचदेवों की उपासना की जा सकती है। पत्थर का त्रिशूल भी यहां खास है।