क्यों भगवान विष्णु को अखंडित और शिवजी को रंगीन चावल नहीं चढ़ाया जाता है ?

धार्मिक मान्यता है कि जगत के पालनहार भगवान विष्णु और धन की देवी मां लक्ष्मी के शरणागत रहने वाले साधकों को जीवन में कभी कोई अभाव नहीं होता है। साथ ही मृत्यु लोक में ही स्वर्ग समान सुखों की प्राप्ति होती है। भगवान विष्णु को श्रीफल अति प्रिय है। साधक पूजा के समय भगवान विष्णु को श्रीफल अर्पित कर सकते हैं।

 भगवान विष्णु की महिमा अपरंपार है। अपने भक्तों के सभी दुख हर लेते हैं। वहीं, धर्म स्थापना के लिए दुष्टों का संहार करते हैं। इसके लिए भगवान विष्णु को सत्यनारायण कहा जाता है। इसका आशय यह है कि जहां सत्य है , वहां भगवान विष्णु हैं। जहां सत्य नहीं है। उस जगह पर भगवान विष्णु नहीं हैं। सत्य ही नारायण हैं और नारायण ही सत्य हैं। चिरकाल से धर्म स्थापना के लिए भगवान विष्णु भिन्न-भिन्न रूप में अवतरित हुए हैं। शास्त्रों की मानें तो कलयुग में भगवान विष्णु दुष्टों का संहार करने और अपने भक्तों की रक्षा करने के लिए कल्कि रूप में अवतरित होंगे। भगवान विष्णु की पूजा करने से सुख और समृद्धि में वृद्धि होती है। साथ ही सभी प्रकार के दुख और संकट दूर हो जाते हैं। ज्योतिष भी कुंडली में गुरु मजबूत करने के लिए विष्णु जी की पूजा करने की सलाह देते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान विष्णु को चावल क्यों नहीं चढ़ाया जाता है ? आइए, पौराणिक कथा जानते हैं-

कथा

सनातन शास्त्रों की मानें तो भगवान विष्णु को चावल न चढ़ाने या अर्पित करने का कनेक्शन मेधा ऋषि से जुड़ा हुआ है। मेधा ऋषि जगत की देवी मां दुर्गा के परम भक्त थे और दुर्गा सप्तशती के कथावाचक थे। आसान शब्दों में कहें तो ऋषि मेधा ने ही दुर्गा सप्तशती का ज्ञान राजा सुरथ और वैश्य समाधि को दिया। दुर्गा सप्तशती की रचना ऋषि मार्कंडेय ने की है। इस पुराण में सात सौ श्लोक हैं। वहीं, पुराणों की संख्या अठारह हैं। मेधा ऋषि ने दुर्गा सप्तशती के माध्यम से मां दुर्गा की महिमा का वर्णन किया है। साथ ही राजा सुरथ और वैश्य समाधि को मां दुर्गा की पूजा भक्ति करने की सलाह दी।

कालांतर में राजा सुरथ और वैश्य समाधि ने कठिन भक्ति कर मां दुर्गा को प्रसन्न किया था। कठिन भक्ति से प्रसन्न होकर मां दुर्गा ने राजा सुरथ को मनोवांछित फल प्रदान किया था। ऐसा कहा जाता है कि जगत की देवी मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए स्वयं मेधा ने जगत जननी की कठिन तपस्या की थी। कालांतर में मेधा ऋषि पंचतत्व में विलीन हो गए। उस समय पञ्च तत्व का अल्प अंश भूमि में विलीन हो गया। इस अंश के स्थान पर जौ और अक्षत उग आया। शास्त्रों में जौ और अक्षत को शुभ माना जाता है। प्रमुख देवी-देवताओं को जौ चढ़ाया जाता है। साथ ही पूजा के समय अक्षत भी भेंट की जाती है। साधक तिलक पर अक्षय लगाते हैं।

भगवान विष्णु दुखियों और ऋषि मुनियों के पालनहार हैं। अपने भक्तों की पुकार भगवान विष्णु शीघ्र सुनते हैं। वहीं, जौ और चावल अन्न हैं। अन्न यानी श्रीधन हैं। अन्न को धनी की देवी मां लक्ष्मी का प्रतीक माना गया है। अतः भगवान विष्णु को चावल अर्पित नहीं किया जाता है। साथ ही एकादशी तिथि पर चावल नहीं खाया जाता है। ऐसा करने से दोष लगता है और कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है। चावल का रंग सफेद होता है। सफेद रंग चंद्रमा का प्रतीक है। चंद्रमा कमजोर होने से मानसिक तनाव की समस्या होती है। साथ ही शुभ कार्यों में बाधा आती है। चंद्रमा इसके अलावा, माता जी की सेहत अच्छी नहीं रहती है। इसके लिए ज्योतिष विष्णु जी को चावल न चढाने की सलाह देते हैं। साधक भगवान विष्णु को हल्दी मिला या लगा अक्षत चढ़ा सकते हैं।

रंगीन चावल क्यों न चढ़ाएं?

भगवान शिव प्रथम योगी हैं। वे त्रिलोकीनाथ हैं। उन्हें श्वेत रंग अति प्रिय है। इसके लिए उन्होंने चंद्रमा को अपने शीश पर धारण किया है। चंद्रमा को शीश पर धारण करने के लिए उन्हें चंद्रशेखर कहा जाता है। भगवान शिव को अखंडित अक्षत चढ़ाया जाता है लेकिन रंगीन चावल अर्पित नहीं किया जाता है। किंवदंती है कि चिरकाल में एक तपस्वी ने अनजाने में भगवान शिव को हल्दी और नींबू एक साथ अर्पित कर दी थी। इससे भगवान शिव का शरीर रक्त-रंजित हो गया। यह देख मां पार्वती घबरा गईं। उस समय मां पार्वती ने मां काली को प्रकट कर तपस्वी को नष्ट करने की सलाह दी। मां काली तपस्वी को नष्ट करने भूलोक पहुंचीं। यह जान तपस्वी भगवान शिव की याचना करने लगी। तब भगवान शिव ने मां काली को ऐसा न करने की सलाह दी। साथ ही मां पार्वती को तपस्वी को भूल के लिए क्षमा करने की याचना की। मां पार्वती मान गईं और तपस्वी को क्षमा प्रदान की। कालांतर से भगवान शिव को रंगीन चावल नहीं चढ़ाया जाता है। साधक भगवान शिव को सफेद चावल चढ़ा सकते हैं। वहीं, कुमकुम भी नहीं अर्पित किया जाता है।

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