गंगा दशहरा पर करें ये एक काम, दुख-दर्द दूर करेंगी गंगा मैया

सनातन धर्म की मान्यताओं के अनुसार, गंगा नदी में श्रद्धापूर्वक डुबकी लगाने मात्र से ही मनुष्य के सारे पाप धुल जाते हैं, इसलिए गंगा को पापमोचनी भी कहा जाता है। इस बार गंगा दशहरा का पर्व और भी खास माना जाता है, क्योंकि इस तिथि पर वरियान, अमृत योग, सर्वार्थ सिद्धि योग के साथ-साथ रवि योग का भी निर्माण हो रहा है। ऐसे में आप गंगा दशहरा के शुभ अवसर पर गंगा स्तोत्र का पाठ करके शभ फलों की प्राप्ति कर सकते हैं।

इसलिए खास है ये पर्व
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा भागीरथ की कठिन तपस्या से गंगा मैय्या का पृथ्वी पर आगमन संभव हो पाया था। हालांकि पृथ्वी के अंदर गंगा के वेग को सहने की शक्ति नहीं थी, इसलिए गंगा माता का भगवान शिव की जटाओं के द्वारा पृथ्वी पर आगमन हुआ था। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, ज्येष्ठ शुक्ल की दशमी तिथि पर ही मां गंगा देवलोक से धरती पर आई थीं। इसलिए इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।

गंगा स्तोत्र का पाठ जरूर करें
ॐ नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः।

नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते॥

नमस्ते रुद्ररुपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः।

सर्वदेवस्वरुपिण्यै नमो भेषजमूर्त्तये॥

सर्वस्य सर्वव्याधीनां, भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।

स्थास्नु जङ्गम सम्भूत विषहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते॥

संसारविषनाशिन्यै, जीवनायै नमोऽस्तु ते।

तापत्रितयसंहन्त्र्यै, प्राणेश्यै ते नमो नमः॥

शांतिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्त्तये।

सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्त्तये॥

भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः।

भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोऽस्तु ते॥

मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः।

नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः॥

नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः।

त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः॥

नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः।

नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नमः॥

बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते।

नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः॥

पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः।

परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नमः॥

पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तुते।

शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः॥

उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीवन्यै नमोऽस्तु ते।

ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः॥

प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।

सर्वापत् प्रति पक्षायै मङ्गलायै नमो नमः॥

शरणागत दीनार्त परित्राण परायणे।

सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥

निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः।

परापरपरायै च गङ्गे निर्वाणदायिनि॥

गङ्गे ममाऽग्रतो भूया गङ्गे मे तिष्ठ पृष्ठतः।

गङ्गे मे पार्श्वयोरेधि गंङ्गे त्वय्यस्तु मे स्थितिः॥

आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गाङ्गते शिवे!

त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।

गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे।।

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