कालाष्टमी पर ऐसे करें भैरव देव को प्रसन्न

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मासिक कालाष्टमी के दिन काल भैरव भगवान देव की पूजा से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। हिंदू मान्यताओं के अनुसार काल भैरव तंत्र-मत्र के देवता माने गए हैं। ऐसे में यदि आप मासिक कालाष्टमी के दिन काल भैरव अष्टक का पाठ करते हैं तो आपको भैरव देव की विशेष कृपा प्राप्त हो सकती है।

हर माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कालाष्टमी मनाई जाती है। इस दिन मुख्य रूप से कालभैरव की पूजा की जाती है, जो भगवान शिव के ही उग्र रूप हैं। ऐसा माना जाता है कि मासिक कालाष्टमी के दिन कालभैरव की पूजा करने से व्यक्ति को ग्रहों के बुरे प्रभाव से मुक्ति मिल सकती है।

कालाष्टमी शुभ मुहूर्त (Masik Kalashtami 2024 Muhurat)

ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 30 मई को सुबह 10 बजकर 13 मिनट पर शुरू हो रही है। साथ ही इस तिथि का समापन 31 मई को सुबह 08 बजकर 08 मिनट पर होगा। कालाष्टमी के दिन निशिता मुहूर्त में काल भैरव की पूजा की जाती है। ऐसे में 30 मई, 2024 गुरुवार के दिन मासिक कालाष्टमी मनाई जाएगी।

मासिक कालाष्टमी पूजा विधि (Masik Kalashtami Puja vidhi)

कालाष्टमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत हो जाएं। इसके बाद मंदिर में एक चौकी पर भैरव बाबा की मूर्ति स्थापित  करें। फिर उनका पंचामृत से अभिषेक करें। और पूजा के दौरान उन्हें इत्र और फूलों की माला चढ़ाएं और चंदन का तिलक लगाएं। इसके बाद भगवान काल भैरव की पूजा-अर्चना करें और अंत में शिव जी का अभिषेक कर दीपक जलाएं। आप इस दिन पर काल भैरव अष्टक का भी पाठ कर सकते हैं। 

काल भैरव अष्टक

देवराजसेव्यमानपावनांघ्रिपङ्कजं व्यालयज्ञसूत्रमिन्दुशेखरं कृपाकरम् ।

नारदादियोगिवृन्दवन्दितं दिगंबरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ १॥

भानुकोटिभास्वरं भवाब्धितारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थदायकं त्रिलोचनम् ।

कालकालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ २॥

शूलटंकपाशदण्डपाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्रताण्डवप्रियं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ३॥

भुक्तिमुक्तिदायकं प्रशस्तचारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्तलोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञहेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे॥ ४॥

धर्मसेतुपालकं त्वधर्ममार्गनाशनं कर्मपाशमोचकं सुशर्मधायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्णशेषपाशशोभितांगमण्डलं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ५॥

रत्नपादुकाप्रभाभिरामपादयुग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्टदैवतं निरंजनम् ।

मृत्युदर्पनाशनं करालदंष्ट्रमोक्षणं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ६॥

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धिदायकं कपालमालिकाधरं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ७॥

भूतसंघनायकं विशालकीर्तिदायकं काशिवासलोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्गकोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिकापुराधिनाथकालभैरवं भजे ॥ ८॥

॥ फल श्रुति॥

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञानमुक्तिसाधनं विचित्रपुण्यवर्धनम् ।

शोकमोहदैन्यलोभकोपतापनाशनं प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम् ॥

॥इति कालभैरवाष्टकम् संपूर्णम् ॥

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