एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर गणेश जी को ऐसे करें प्रसन्न

हर महीने में आने वाली कृष्ण और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को भगवान गणेश के लिए समर्पित माना जाता है। कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है वहीं शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को विनायक चतुर्थी के रूप में जाना जाता है। ऐसे में आइए जानते हैं संकष्टी चतुर्थी पर किस प्रकार गणेश जी की कृपा प्राप्त की जा सकती है।

पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि को एकदंत संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है। इस दिन भक्त गणेश जी की कृपा प्राप्ति के लिए व्रत और पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसे में आइए पढ़ते हैं एकदंत संकष्टी चतुर्थी पर गणेश जी की पूजा किस विधि से करनी चाहिए।

एकदंत संकष्टी चतुर्थी शुभ मुहूर्त

ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि 26 मई को दोपहर 04 बजकर 36 मिनट से शुरू हो रही है। वहीं, इस तिथि का समापन 27 मई को दोपहर 03 बजकर 23 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार एकदंत संकष्टी चतुर्थी का व्रत 26 मई, रविवार के दिन किया जाएगा। 

गणेश पूजा विधि

संकष्टी चतुर्थी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से मुक्त हो जाएं। इसके बाद गणेश जी का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें। मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद एक चौकी पर हरे रंग का कपड़ा बिछाकर गणेश जी की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें। अब भगवान गणेश को फूल के माध्यम से पहले थोड़ा-सा जल अर्पित करें। गणेश जी के समक्ष दीप जलाएं और 11 या 21 गांठ दूर्वा चढ़ाएं।

दूर्वा चढ़ाने के साथ ‘इदं दुर्वादलं ऊं गं गणपतये नमः’ मंत्र का जाप करें। इसके बाद गणपति जी को सिंदूर, अक्षत और भोग के रूप में लड्डू या फिर मोदक अर्पित करें। सूर्यास्त होने से पहले गणपति जी का दोबारा पूजा करें और चंद्र देव के दर्शन के बाद उन्हें अर्घ्य दें और व्रत खोल लें। आप चाहें तो बप्पा की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए इस शुभ अवसर पर गणेश संकटनाशन स्तोत्र का भी पाठ करें।

गणेश संकटनाशन स्तोत्र

प्रणम्यं शिरसा देव गौरीपुत्रं विनायकम।

भक्तावासं: स्मरैनित्यंमायु:कामार्थसिद्धये।।1।।

प्रथमं वक्रतुंडंच एकदंतं द्वितीयकम।

तृतीयंकृष्णं पिङा्क्षं गजवक्त्रंचतुर्थकम।।2।।

लम्बोदरं पंचमंच षष्ठं विकटमेव च।

सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णतथाष्टकम्।।3।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तुविनायकम।

एकादशं गणपतिं द्वादशं तुगजाननम।।4।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्य य: पठेन्नर:।

न च विघ्नभयं तस्य सर्वासिद्धिकरं प्रभो।।5।।

विद्यार्थी लभतेविद्यांधनार्थी लभतेधनम्।

पुत्रार्थी लभतेपुत्रान्मोक्षार्थी लभतेगतिम्।।6।।

जपेद्वगणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासै: फलंलभेत्।

संवत्सरेण सिद्धिं च लभतेनात्र संशय: ।।7।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वां य: समर्पयेत।

तस्य विद्या भवेत्सर्वागणेशस्य प्रसादत:।।8।। ॥

इति श्रीनारदपुराणेसंकष्टनाशनंगणेशस्तोत्रंसम्पूर्णम्॥

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