12 मई को मनाई जाएगी सूरदास जयंती, यहां पढ़िए

कई मान्यताओं के अनुसार संत सूरदास जन्मान्ध थे अर्थात वह जन्म से ही अन्धे थे। लेकिन दृष्टिहीन होने के बावजूद उन्होंने कृष्ण भक्ति से सराबोर कई सुंदर महाकाव्य और दोहों (Surdas ke Dohe) की रचना की। इसलिए यह भी माना जाता है कि भगवान कृष्ण ने स्वयं ही सूरदास की भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें दिव्य दृष्टि प्रदान की थी।

संत सूरदास एक महान कवि तथा संगीतकार थे, जिन्हें मुख्य रूप से भगवान कृष्ण की भक्ति के लिए जाना जाता है। हर साल वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सूरदास जयंती मनाई जाती है। ऐसे में साल 2024 में सूरदास जयंती 12 मई, रविवार के दिन मनाई जाएगी। उनके गीत व कविताएं पूर्ण रूप से कृष्ण जी की भक्ति के लिए समर्पित थे, जिन्हें काफी प्रसिद्धि भी प्राप्त हुई। तो चलिए पढ़ते हैं सूरदास जी के कुछ भक्तिपूर्ण दोहे अर्थ सहित।

सूरदास जी के दोहे

अबिगत गति कछु कहति न आवै। ज्यों गुंगो मीठे फल की रस अन्तर्गत ही भावै।।

परम स्वादु सबहीं जु निरन्तर अमित तोष उपजावै। मन बानी कों अगम अगोचर सो जाने जो पावै।।

अर्थ – सूरदास जी इस दोहे में कहते हैं कि कुछ बातें ऐसी होती हैं, जिन्हें व्यक्ति समझ सकता है, लेकिन किसी दूसरे को बताने में असर्मथ होता है। उदाहरण के तौर पर यदि किसी गूंगे व्यक्ति को मिठाई खिलाई जाए, तो वह उसके स्वाद का पूरी तरह आनंद उठाता है, लेकिन उसका वर्णन नहीं कर सकता। वैसे ही ईश्वर दिखाई नहीं देता। लेकिन जो व्यक्ति सच्चे मन से उनकी भक्ति करता है, उसे ईश्वर की प्राप्ति जरूर होती है।

मीन वियोग न सहि सकै, नीर न पूछै बात।

देखि जु तू ताकी गतिहि, रति न घटै तन जात॥

अर्थ – इस दोहे में सूरदास जी कहते हैं कि मछली कभी पानी का वियोग नहीं सह सकती, भले ही पानी को मछली की कोई आवश्यकता नहीं है। भले ही मछली का शरीर नष्ट हो जाए, इसके बाद भी उसका पानी के प्रति प्रेम कभी कम नहीं होता। अर्थात व्यक्ति को अपनी जड़ों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए।

सदा सूँघती आपनो, जिय को जीवन प्रान।

सो तू बिसर्यो सहज ही, हरि ईश्वर भगवान्॥

अर्थ – अपने इस दोहे में संत सूरदास कहते हैं कि जो ईश्वर सदा अपने साथ रहते है और प्राणों का भी प्राण हैं। उस प्रभू को तूने यानी मनुष्य ने अनायास ही बातों ही बातों में भुला दिया है।

चरन कमल बन्दौ हरि राई

जाकी कृपा पंगु गिरि लंघै आंधर कों सब कछु दरसाई।

बहिरो सुनै मूक पुनि बोलै रंक चले सिर छत्र धराई

सूरदास स्वामी करुनामय बार-बार बंदौं तेहि पाई।।

अर्थ – उपरोक्त पंक्तियों में सूरदास करते हैं कि भगवान कृष्ण जिस भी व्यक्ति पर अपनी कृपा बरसाते हैं, वह जीवन की बड़ी से बड़ी मुश्किलों का पार कर लेता है। उनकी ही कृपा से लड़गा व्यक्ति हाड़ लांघ सकता है, गूंगे भी बोलने लगते हैं और गरीब व्यक्ति धनवान हो जाता है। ऐसे दयावान श्रीकृष्ण को मैं बार-बार नमन करता हूं।

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