अब तक धरती पर मौजूद हैं रामायण के ये संकेत

रामायण हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण और पवित्र माने गए ग्रंथों में से एक है। इसमें वर्णित प्रभु श्री राम सीता जी लक्ष्मण जी और हनुमान जी को पूजनीय माना जाता है। रामायण काल से जुड़े कुछ ऐसे सबूत आज भी धरती पर मौजूद हैं जो इस बात का प्रमाण देते हैं कि वाल्मीकि द्वारा लिखी गई रामायण एक प्रामाणिक ग्रंथ है।

 रामायण, सनातन धर्म के सबसे लोकप्रिय और महत्वपूर्ण महाकाव्यों में से एक है। रामायण में वर्णित राम जी को भगवान विष्णु जी का ही स्वरूप माना गया है। आज भी रामायण कालीन ऐसे कई संकेत इस धरती पर मौजूद हैं, जो वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण को एक प्रामाणिक ग्रंथ साबित करते हैं। तो चलिए जानते हैं उन सबूतों के विषय में।

सबसे बड़ा सबूत

भारत और श्रीलंका के बीच बना पत्थरों का पुल, रामायण से सच होने के सबसे बड़ा सबूत माना जाता है। हालांकि पानी के नीचे चले जाने के कारण अब यह पुल स्पष्ट रूप से नहीं दिखाई देता। यह पुल राम जी की सेना ने पत्थरों से तैयार किया था, ताकि वह समुद्र को पार कर सकें।

रामेश्वरम

तमिलनाडु में रामेश्वरम मंदिर में स्थापित शिवलिंग, जिसे लेकर यह मान्यता प्रचलित है कि स्वयं भगवान राम ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने लंका विजय की कामना हेतु शिवलिंग की स्थापना की और पूजा अर्चना की थी। भगवान राम के नाम से ही इस जगह का नाम रामेश्वरम द्वीप और मंदिर का नाम रामेश्वरम पड़ा।

अशोक वाटिका

रावण ने सीता जी का हरण के बाद उन्हें अशोक वाटिका में रखा था। यह वाटिका आज भी श्रीलंका में मौजूद है, जिसे आज सीता एल्या के नाम से जाना जाता है। श्रीलंका की एक रिसर्च कमेटी ने इसपर शोध किया और यह पाया कि यह वहीं अशोक वाटिका है, जिसका वर्णन रामायण में मिलता है।

यहां-यहां मिलते हैं पद चिह्न

रामायण के अनुसार, भगवान राम को चौदह साल के वनवास मिला था, जिसमें से वह 11 साल चित्रकूट में रहे। चित्रकूट में आज भी भगवान राम और सीता के कई पद चिन्ह मौजूद हैं। वहीं, जब हनुमान जी माता सीता की खोज में निकले तो उन्होंने भव्य रूप धारण कर किया हुआ था। श्रीलंका पहुंचे के बाद वह एक चट्टान पर तेजी से उतरे, जिस कारण उनके पैरों के विशाल चिह्न आज भी इस चट्टान पर मौजूद हैं।

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