बेहद अनोखा है केरल का यह त्रिशूर पूरम पर्व

त्रिशूर पूरम केरल का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध उत्सव है। यह परंपरा और अपनी संस्कृति को पेश करने का एक अद्भुत तरीका है। इसे अप्रैल-मई के मलयालम महीने में आयोजित किया जाता है। इस असाधारण त्योहार में सजे-धजे हाथियों का प्रदर्शन, रंगीन छतरियां और संगीत शामिल हैं। यह शानदार दृश्य केरल के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक सार को जोड़ता है। तो आइए इस शानदार पर्व से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण बातों को जानते हैं –

बेहद प्राचीन है यह पर्व

त्रिशूर पूरम पर्व का इतिहास 200 साल से भी अधिक पुराना है। इसकी स्थापना 1790 से 1805 तक कोचीन साम्राज्य के शासक शक्तिन थंपुरन ने की थी। यह लगातार 8 दिनों तक चलता है। इसके पीछे एक कथा प्रचलित है, जिसमें ऐसा बताया गया है कि जब भारी बारिश के कारण मंदिरों के एक समूह को लोकप्रिय अराट्टुपुझा पूरम में भाग लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था, तब उनकी शिकायतों को सुनने के बाद शक्तिन थंपुरन ने स्वयं का पर्व त्रिशूर पूरम शुरू करने का फैसला किया।

उस दौर से यह उत्सव केरल का एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और आध्यात्मिक कार्यक्रम बन गया है, जो दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है।

त्रिशूर पूरम का महत्व

त्रिशूर पूरम एक महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हर साल बड़ी संख्या में पर्यटकों का ध्यान अपनी ओर खींचता है। इस दौरान आसपास के सभी मंदिरों में भव्य पूजा कराई जाती है। इसमें 50 से अधिक सजे-धजे हाथियों की धार्मिक यात्रा निकाली जाती है और पारंपरिक संगीत भी बजाया जाता है। यह त्यौहार अपने विस्तृत आतिशबाजी प्रदर्शन के लिए भी प्रसिद्ध है, जिसे वेदिकेट्टू के नाम से जाना जाता है।

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