भीष्म अष्टमी उत्तरायण के दौरान आती है, जो साल का सबसे पवित्र समय होता है, जब सूर्य अपनी उत्तर दिशा में होते हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भीष्म उत्तरायण के दौरान मरना चाहते थे, इसलिए उन्होंने महाभारत युद्ध के मैदान में अपनी हार के बाद तीरों की शैया पर रहना चुना और उत्तरायण के बाद अपने प्राण त्याग दिए।
भीष्म अष्टमी का व्रत बेहद शुभ और फलदायी माना जाता है। इस दौरान लोग अपने पितरों की पूजा और तर्पण करते हैं। इस साल यह व्रत 16 फरवरी, 2024 को रखा जाएगा।
भीष्म अष्टमी पूजा विधि
माघ माह शुक्ल पक्ष के आठवें दिन को निर्वाण तिथि या मोक्ष का दिन कहा जाता है। इस पवित्र दिन भीष्म की स्मृति में कुश घास, तिल और जल अर्पित करके तर्पण करना अत्यधिक शुभ होता है, जो लोग इस दिन पवित्रता और सच्चे भाव के साथ अपने पितरों का तर्पण पूरे विधि विधान के साथ करते हैं उनके पितरों को मुक्ति मिलती हैं और उन्हें पितृ दोष से छुटकारा मिल जाता है।
भीष्म अष्टमी व्रत नियम
- साधक सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें।
- पवित्र स्नान करने के बाद भगवान शिव की पूजा करें।
- भाव के साथ कठिन व्रत का पालन करें।
- पितरों का तर्पण किसी पंडित के हाथों करवाएं।
- शाम को पूजा के बाद अपने व्रत का पारण करें।
- अंत में शंखनाद करें।
भीष्म अष्टमी व्रत के लाभ
भीष्म अष्टमी का उपवास करने से व्यक्तियों को गौरवशाली और ईमानदार संतान की प्राप्ति होती है।
इस दिन पूजा, तिल तर्पण और व्रत सभी पापों को दूर कर सकता है, इसलिए इनका पालन श्रद्धा के साथ करें।
भीष्म ब्रह्मचारी थे इसलिए उनके लिए तर्पण करने से देवताओं का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है।
भीष्म अष्टमी का व्रत और इस दिन तर्पण करने से पितृ दोष से मुक्ति मिलती है।