सनातन धर्म में तुलसी का पौधा पूजनीय है। तुलसी के पौधे में धन की देवी मां लक्ष्मी का वास होता है। मान्यता है कि तुलसी के पौधे के पास रोजाना घी का दीपक जलाकर विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने से मां लक्ष्मी और जगत के पालनहार भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और घर में खुशियों का आगमन होता है। साथ ही पूजा सफल होती है।
सनातन धर्म में तुलसी का पौधा पूजनीय है। इस पौधे में धन की देवी मां लक्ष्मी का वास होता है। मान्यता है कि तुलसी के पौधे की रोजाना विधिपूर्वक पूजा-अर्चना करने से मां लक्ष्मी और जगत के पालनहार भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और घर में खुशियों का आगमन होता है। ऐसा कहा जाता है कि तुलसी पूजा के दौरान विशेष मंत्रों का जाप करने से साधक को जीवन की सभी समस्याओं से छुटकारा मिलता है और पूजा सफल होती है। इसलिए तुलसी पूजा के समय मंत्रों का जाप करना आवश्यक है। तुलसी पूजा के मंत्र इस प्रकार है-
तुलसी पूजा का महत्व
सनातन धर्म में विधिपूर्वक तुलसी पूजा करने का अधिक महत्व है। प्रतिदिन तुलसी के पास घी का दीपक जलाकर पूजा करने से परिवार में धन, समृद्धि और खुशहाली आती है और साधक को धन की देवी मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। घर में तुलसी का पौधा लगाना बेहद शुभ माना जाता है। घर में तुलसी होने से नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव नहीं होता है। बता दें कि तुलसी भगवान विष्णु जी की प्रिय है। इसलिए श्रीहरी के भोग में तुलसी दल को शामिल किया जाता है।
मां तुलसी का पूजन मंत्र
तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी।
धर्म्या धर्मानना देवी देवीदेवमन: प्रिया।।
लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत्।
तुलसी भूर्महालक्ष्मी: पद्मिनी श्रीर्हरप्रिया।।
तुलसी नामाष्टक मंत्र
वृंदा वृंदावनी विश्वपूजिता विश्वपावनी।
पुष्पसारा नंदनीय तुलसी कृष्ण जीवनी।।
एतभामांष्टक चैव स्त्रोतं नामर्थं संयुतम।
य: पठेत तां च सम्पूज्य सौश्रमेघ फलंलमेता।।
तुलसी स्तुति
मनः प्रसादजननि सुखसौभाग्यदायिनि।
आधिव्याधिहरे देवि तुलसि त्वां नमाम्यहम्॥
यन्मूले सर्वतीर्थानि यन्मध्ये सर्वदेवताः।
यदग्रे सर्व वेदाश्च तुलसि त्वां नमाम्यहम्॥
अमृतां सर्वकल्याणीं शोकसन्तापनाशिनीम्।
आधिव्याधिहरीं नॄणां तुलसि त्वां नम्राम्यहम्॥
देवैस्त्चं निर्मिता पूर्वं अर्चितासि मुनीश्वरैः।
नमो नमस्ते तुलसि पापं हर हरिप्रिये॥
सौभाग्यं सन्ततिं देवि धनं धान्यं च सर्वदा।
आरोग्यं शोकशमनं कुरु मे माधवप्रिये॥
तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भयोऽपि सर्वदा।
कीर्तिताऽपि स्मृता वाऽपि पवित्रयति मानवम्॥
या दृष्टा निखिलाघसङ्घशमनी स्पृष्टा वपुःपावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्ताऽन्तकत्रासिनी।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः॥
॥ इति श्री तुलसीस्तुतिः ॥