क्रिया योग: आध्यात्मिक योद्धा बनकर करें भीतर के कौरवों से युद्ध…..

एक व्यक्ति जब आध्यात्मिक मार्ग पर अपनी यात्रा आरंभ करता है तो उसके मन में यह भावना हो सकती है कि वह उस मार्ग के योग्य नहीं है। क्योंकि सांसारिक आदतों तौर-तरीकों में हम इतने गहरे डूबे हुए हैं कि व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ करते हुए संभवत यह सोचकर हतोत्साहित अनुभव कर सकता है कि यहां सब संत हैं और मैं एक पापी हूं जो उनके मध्य बैठा हूं।

 कभी-कभी एक व्यक्ति जब आध्यात्मिक मार्ग पर अपनी यात्रा आरंभ करता है, तो उसके मन में यह भावना हो सकती है कि वह उस मार्ग के योग्य नहीं है। क्योंकि सांसारिक आदतों और तौर-तरीकों में हम इतने गहरे डूबे हुए हैं कि एक व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ करते हुए संभवत: यह सोचकर हतोत्साहित अनुभव कर सकता है कि यहां सब संत हैं और मैं एक पापी हूं, जो उनके मध्य बैठा हुआ हूं।

वस्तुत: सभी मनुष्य और विशेष रूप से आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वाले लोग एक ब्रह्मांडीय भ्रम के अधीन हैं। हम सबके अंदर थोड़ी-बहुत विनम्रता है और उस विनम्रता का अनुचित संचालन स्वाभिमान की कमी या स्वयं को दोषी मानने के रूप में अभिव्यक्त होता है। परंतु याद रखें, एक बार किसी ने योगानंद जी से पूछा था कि योगी कथामृत में सबसे अधिक प्रेरणादायक क्या है, तो उन्होंने कहा था, मेरे गुरुदेव श्रीयुक्तेश्वरजी के ये शब्द कि, ‘अतीत को भूल जाओ। सभी मनुष्यों के जीवन अनेक दोषों से कलुषित हैं। यदि तुम इस समय आध्यात्मिक प्रयास कर रहे हो, तो भविष्य में सब कुछ सुधर जाएगा।’

अपने मन को केंद्रित रखने का यह सकारात्मक उपाय है। सुनने में यह थोड़ा कठोर प्रतीत हो सकता है, किंतु जब कभी लोग दृढ़तापूर्वक स्वयं से यह कहते रहते हैं कि, ‘मेरे अतिरिक्त प्रत्येक व्यक्ति मुझसे अधिक उन्नत है, और इस कमरे में अकेला मैं ही ऐसा व्यक्ति हूं, जो इस मार्ग में पूर्ण रूप से असफल है,’ तब एक प्रकार से, यह प्रयास न करने का एक बहाना बन जाता है। आपको अपनी उस प्रवृत्ति का विरोध करना होगा और उसे यह आदेश देना होगा, ‘रुको! मैं तुम्हारी बात नहीं सुनूंगा! यहां से दूर भागो!’ क्योंकि आपके साथ जो हो रहा है, उसकी तुलना आप किसी ऐसे पागल आदमी से कर सकते हैं, जो आपके द्वार पर खड़ा है और आपसे कह रहा है, ‘अरे, तुम तो एक बेकार आदमी हो, तुम किसी काम के आदमी नहीं हो।’ 

आपके मन के ऐसे भ्रम अहंकार से जुड़े होते हैं और उनका पहला उद्देश्य होता है आपको आध्यात्मिक प्रयास करने से रोकना। प्रायः स्वयं के प्रति निराशाजनक प्रवृत्ति सबसे अधिक प्रभावी ढंग से आपको आध्यात्मिक प्रयास करने से रोकती है। इसलिए, आपको उसका सामना करना होगा, आपको एक ‘आध्यात्मिक योद्धा’ बनना होगा। ये वे कौरव योद्धा हैं, जिनके बारे में परमहंस योगानंद जी ने श्रीमद्भगवद्गीता की अपनी व्याख्या (ईश्वर-अर्जुन संवाद) के प्रथम अध्याय में उल्लेख किया है। वे कौरव योद्धा आपकी विचार प्रक्रिया से जुड़ने का प्रयास करते हैं तथा आपको उनका सामना करने और आपकी विजेता आध्यात्मिक प्रकृति पर दृढ़ रहने के मार्ग से आपको विचलित करते और रोकते हैं। परंतु यह स्वतः ही नहीं हो जाता है।

इसके लिए इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। इसके लिए दृढ़संकल्प की आवश्यकता होती है। इसके लिए आंतरिक शक्ति की आवश्यकता होती है। परंतु सबसे बुरा कार्य जो एक व्यक्ति कर सकता है, वह है बार-बार स्वयं से यह कहते रहना कि, ‘मैं किसी काम का व्यक्ति नहीं हूं, दूसरा हर व्यक्ति मुझसे अधिक अच्छा है।’ इस प्रकार से सोचना बंद कर दें और किसी अधिक सकारात्मक विचार को चुनें। इसीलिए गुरुजी परमहंस योगानंद जी ने हमें अपनी पुस्तकों के रूप में सकारात्मक संबल प्रदान किए हैं, जिसमें उन्होंने कहा है, ‘मैं ईश्वर की संतान हूं, मैं ईश्वर के प्रतिबिंब स्वरूप में निर्मित हूं।’ अपने बारे में मिथ्या धारणाओं के भ्रमों को समाप्त करने के लिए प्रयास करना पड़ता है। यह प्रयास ध्यान और सकारात्मक प्रतिज्ञा द्वारा किया जाता है।

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