जीवन में सफलता पाने के लिए इन आदतों जल्द करे त्याग

गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आचरण को लेकर मनुष्य को सदैव गंभीर और सर्तक रहना चाहिए. जो व्यक्ति अपने आचरण को लेकर सचेत नहीं रहता है उसे परेशानियों का सामना करना पड़ता है. भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं-

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जन: ।
स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते ॥

गीता के इस उपदेश का अर्थ है कि महान व्यक्ति के आचरण का अनुसरण अन्य लोग भी करते हैं. इसलिए दूसरों के साथ आचरण को लेकर गंभीर रहना चाहिए और सभी का सम्मान करना चाहिए. जिस आचरण की आप दूसरों से उम्मीद नहीं करते हैं वैसा आचरण किसी साथ नहीं करना चाहिए.

चाणक्य की चाणक्य नीति भी यही कहती है. चाणक्य के अनुसार व्यक्ति पद और धन से श्रेष्ठ नहीं बनता है, व्यक्ति अपने अच्छे आचरण से श्रेष्ठ बनता है. इसलिए व्यक्ति को सदैव ही गलत आदतों से दूर रहना चाहिए. क्योंकि गलत आदतें व्यक्ति की प्रतिभा का नाश करती हैं. इसलिए जीवन में यदि सफल होना है तो इन आदतों से दूर ही रहें.

निंदा रस से दूर रहें
निंदा रस से व्यक्ति को दूर रहना चाहिए. जो व्यक्ति दूसरों की बुराई करता है, कमियां देखता है वह व्यक्ति एक दिन स्वयं ही इन अवगुणों से युक्त हो जाता है. आरंभ में तो निंदा रस में आनंद आने लगता है, लेकिन धीरे-धीरे वे सभी अवगुण स्वयं में आने लगते हैं.

अहंकार न करें
चाणक्य के अनुसार व्यक्ति को अहंकार से बहुत दूर रहना चाहिए. अहंकार में व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ समझने की भूल करने लगता है और एक दिन यही अहंकार उसके पतन का कारण बन जाता है. रामायण कथा में रावण का चरित्र इसका प्रमुख उदाहरण है. सभी ग्रंथ और विद्वानों की शिक्षाओं का सार यही है कि सफल बनना है तो सर्वप्रथम अहंकार का त्याग करें, अंहकार जब तक रहेगा, वह प्रेम से व्यक्ति को दूर रखेगा.

लालच को नजदीक न आनें दें
लालच यानि लोभ भी एक प्रकार से व्यक्ति का शत्रु है और हर प्रकार की बुराइयों का कारक है. इसलिए लालच से दूर रहना चाहिए. लोभ करने वाला व्यक्ति कभी संतुष्ट नहीं रहता है. लालच के कारण उसका चित्त शांत नहीं रहता है और दूसरों से जलन मानने लगता है.

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