भगवान गणेश का गजानन नामक अवतार लोभासुर का वध करने के लिए हुआ था। कहते हैं कि एक बार देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर कैलाश पहुंचे। वहां उन्होंने भगवान शिव-पार्वती का दर्शन किया। कुबेर पार्वती जी के अनुपम सौंदर्य को देखकर मुग्ध हो गए और एकटक निहारते रहे। यह देखकर पार्वती जी क्रोधित हो गईं।
इससे कुबेर काफी भयभीत हो गए। उसी समय भयभीत कुबेर से लोभासुर नाम के प्रतापी दैत्य का जन्म हुआ। उसने सीधे गुरु शुक्रराचार्य के पास जाकर उनके चरणों की वंदना कर प्रार्थना की दैत्य गुरु उसे अपना शिष्य बना लें। शुक्राचार्य ने उसकी बात मान ली। तब शुक्रचार्य ने लोभासुर को भगवान शिव का तप करने की सलाह दी।
लोभासुर ने लगभग सत्रह वर्ष तक भगवान शिव का तप किया। शिव प्रसन्न हुए और लोभासुर को तीनों लोकों में निर्भय रहने का वचन दिया। लोभासुर ने वरदान पाकर जल्द ही तीनों लोक पर अपना आधिपत्य हासिल कर लिया। सभी देव-देवताओं को लोभासुर के आगे हार माननी पड़ी। लोभासुर जैसी विकराल समस्या से मुक्ित पाने के लिए सभी देवता रैभ्य ऋर्षि से मिले।
ऋर्षि ने कहा कि सिर्फ गजानन ही, लोभासुर से मुक्ति दिला सकते हैं। पहले गजानन ने लोभासुर को समझाया और जब वह न माना तो युद्ध के लिए पहुंचे। वहां गजानन के विकराल रूप को देखकर लोभासुर घबरा गया और गजानन की शरण में आ गया। गजानन ने उसे भी पाताल भेज दिया। इस तरह लोभासुर से देवताओं को मुक्ति दिलाकर गजानन, गणेशधाम की ओर चले गए।