आप सत्संग में गए और वहां पर समाधि के बारे में सुना। पर क्या एक दिन में समाधि सम्भव है? ज्ञान सुना, आत्मा क्या है और परमात्मा क्या है, यह जान लिया, पर इन शब्दों की परिभाषाओं का पता चलना क्या काफी है? खोज के लिए वक्त चाहिए। तप के लिए और किसी भी साधना के लिए वक्त चाहिए। अपने खुद के शरीर और मन को समझने के लिए वक्त चाहिए। अपने शरीर को साधने के लिए भी वक्त चाहिए। तो ऋषि हर समय यही प्रार्थना करता है- हे सूर्यदेव! आज से मैं सौ वर्ष जीवित रहूं। किसलिए करता है यह प्रार्थना? ऋषि यह प्रार्थना इसलिए करता है, क्योंकि सूर्य ही प्रकाश, तेज और ऊर्जा का स्रोत हैं। सूर्य की ऊर्जा से ही इस शरीर का पोषण होता है। सूर्य पर ही अन्न और वनस्पति, फल और फूल, पौधे और सभी प्राणी निर्भर हैं। दिन और रात, जीवन और मृत्यु सूर्य पर ही निर्भर हैं। अगर सूर्य ही न हों तो कुछ भी नहीं।
सूर्य ही मनुष्य के इस जीवनचक्र की धुरी हैं। तुम्हारा शरीर सूर्य के कारण सक्रिय होता है और तुम्हारा मन चंद्रमा के कारण सक्रिय होता है। चंद्रमा की घटती हुई कलाओं का असर मानव के मन और मस्तिष्क पर पड़ता है। पूर्णिमा के बाद चांद घटने लग जाता है। तत्त्वचिंतक और विचारशील व्यक्तियों ने यह महसूस किया है कि जैसे-जैसे चंद्रमा की कलाएं घटती जाती हैं, वैसे-वैसे मानव-मन में उदासी, दुख, चिंताएं, परेशानी, विक्षिप्तता आदि उलझनें बढ़ने लगती हैं।
चंद्रमा के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है। बहुत ऊंची-ऊंची लहरें उठती हैं और बहुत गहराई में गिरती हैं। पूर्णिमा के दिन लहरों का यह उत्पात सबसे ज्यादा होता है। अगर चंद्रमा के कारण समुद्र में ज्वार-भाटे उठ सकते हैं, जो आगे तूफान में बदल सकते हैं तो ख्याल रखना कि तुम्हारे शरीर में भी 70 प्रतिशत जल ही है। अगर चंद्रमा की किरणों का इतना गहरा प्रभाव समुद्र में आ सकता है तो क्या उनका प्रभाव आपके शरीर पर नहीं आ सकता।
चंद्रमा को मन का देवता कहा जाता है और सूर्य को शरीर का। शरीर को रोग-रहित रखने के लिए, अच्छे स्वास्थ्य के लिए सूर्यदेव से प्रार्थना की जाती है। हमारा शरीर सूर्य के साथ बहुत गहराई से संयुक्त है। इसी कारण ऋषियों ने यह सुझाव दिया कि सूर्य देवता शरीर के मालिक हैं, इसलिए सूर्य के उदय होने से पहले ही हाजिरी भरो। उनको प्रणाम करो। मान लो आपने अपने पूज्य गुरुदेव को घर पर आमंत्रित किया है। तो जरा सोचो कि क्या सम्भव है कि गुरु घर पर आएं और तुम उनके स्वागत के लिए घर में उपस्थित ही न हो? सूर्य देवता इस शरीर के स्वामी हैं, इस देह के गुरु हैं, इस शरीर के नाथ हैं तो उनके आकाश में उपस्थित होने से पहले ही तुम्हें उनका स्वागत करने के लिए अच्छी तरह से तैयार नहीं हो जाना चाहिए?
ब्रह्म मुहूर्त के समय जगना शरीर को निरोगी और स्वस्थ रखने का सबसे अचूक साधन है। सूर्य की किरणें विशेषतः सूर्योदय के पहले 10 मिनट में सबसे ज्यादा लाभकारी होती हैं। उस समय जब आप आकाश से झरती हुई स्वास्थ्य-वर्धक किरणों में स्नान करते हो और उन किरणों से ऊर्जा का रसपान करते हो तो आप भी सूर्य की तरह दीप्तिमान हो जाते हो। जैसे सूर्य शक्ति और तेजस्विता का पुंज हैं, ऐसे ही आप भी ओज और कांति का भंडार बन जाते हो। पाश्चात्य देशों के विद्वानों ने पहली बार जब हमारे ऋषियों की ऐसी प्रार्थनाओं के बारे में पढ़ा कि आज से मैं सौ वर्ष जीऊं, तो उन्होंने कहा कि क्या वे ऋषि डरे हुए इंसान थे? उनको क्या मृत्यु का भय था या उन लोगों में जिजीविषा अधिक थी? परंतु सत्य तो यह है कि न तो वे मृत्यु से भयभीत थे, न ही उनमें अधिक समय तक जीने की इच्छा थी और न ही अन्य कोई चिंता या वासनाएं थीं।
उनका लक्ष्य सिर्फ उस अज्ञात ब्रह्म के स्वरूप को खोजना था। इसके लिए दो स्थितियां अनिवार्य थीं। एक, शरीर स्वस्थ हो, क्योंकि अगर शरीर ही अस्वस्थ हो तो तुम कुछ प्राप्त नहीं कर सकते। और दूसरा, तुम्हारे पास यथोचित पर्याप्त जीवनकाल भी हो, क्योंकि अगर जीवन ही न हो तो कुछ भी नहीं हो सकता।